आज ही मिले
और आज ही विदा हो गए।
सहनाई बजी
आज ही अलविदा कह गए।
ड़ोली उठी थी उनकी
ढेर सारे अरमान जगे थे
आज ही बरात लौटी
और आज ही जूदा हो गए।
सुहाग रात
फूलों की सेज
प्यार के दो पल
दो फूल
एक गुलदस्ते में
दीदार भर हुआ
वसंत एका एक
पतझड़ में बदला।
बुलावा फौज से आया
चले गये बिदा होकर
रिस्तें-नातो से दूर
और फिर पाॅचवे दिन
खबर आयी।
शहीद हो गये
कर्नल रघुवीर
अपने वतन के लिए
पतन हो गया उनका शरीर
सदा के लिए
मिट्टी में मिलकर
ढ़ेर सी हो गई।
और फिर शेष रह गया
याद दिलाने वाला
उनका मेडल।
माॅ रोते-रोते
हो गई पागल
बूढ़े बाप की
लाठी गुम हो गई।
नवेली दुल्हन
घूंघट में
चित्कार से रोई
सारे संजोय सपने
एक-एक कर विखर गये।
विरह-वेदना
जिंदगी की ड़ोर
सारे के सारे लहु-लुहान होकर
विरान हो गया।
दो पल का सुख
आॅचल में समेटकर
पत्थर दिल
पत्थर ही बन गयी।
अब न अरमान जिंदा है
न सपने सांस लेते हंै।
वो रंग-उमंग शहनाई
बस याद है
उस ड़ोली की
पल भर की मुलाकात
दर्शन
और एक दर्शन
दर्द दे गया।
कभी न ठीक होने वाला
एक घाव
पल पल तड़पा देने वाला
एक टीस
एक तड़पन
और एक बेचैनी।
Writer Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth 10.10.1963
Shivpuri jamuni chack Barh RS Patna (Bihar)
Pin Code 803214
दर्द को बड़ी ही खूबसूरती के साथ समेटे रखा है आपने शर्मा जी। बहुत ही बेहतरीन…..
Thank you for your comments.
बहुत ही सूंदर रचना…………………………
Very very thank you vijay jee.
बहुत अच्छे बिंदु ………………..
Thank you sir for your comments..
बहुत खूबसूरती से आपने व्यथा को अभिव्यक्त किया है…….
बिंदु जी आपने किसी शहीद के घर का बड़ा जीवंत व् भावुक वर्णन किया है .
BAHUT BAHUT HARDIK AABHAR SIR JEE.
SAH SHADAR SNEHIL HRIDAY SE AAP KA ABHIWADAN .
SADAR ABHINANDAN KE SAATH HARDIK AABHAAR.