हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं
अलग ही रास्ते फिर आँधियाँ-तूफ़ान लेते हैं
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना
कहाँ हम भी किसी मग़रूर का अहसान लेते हैं
हुआ बेटा बड़ा हाक़िम, भला उसको बताना क्या
कि करवट बाप के सीने में कुछ अरमान लेते हैं
हो बीती उम्र शोलों पर ही चलते-दौड़ते जिनकी
क़दम उनके कहाँ कब रास्ते आसान लेते हैं
इशारा वो करें बेशक उधर हल्का-सा भी कोई
इधर हम तो ख़ुदाया का समझ फ़रमान लेते हैं
है ढलती शाम जब,तो पूछता है दिन थका-माँदा
सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं?”