बेरहम हो के जो उसने किसी को भुला दिया
चोट ऐसी करी दिल पर पत्थर भी रुला दिया
बड़ी मेहनत से सँवारा था खण्डर हुआ महल
एक जलजले ने फ़िर सब मिट्टी में मिला दिया
बागो में अब इठला के घूमा करती है दुनियाँ
माली मगर खुश है उसने गुलशन खिला दिया
अगर वो जान भी दे दें उसे कोई भी पूछता नहीं
मुकद्दर ने उसको हरदम कुछ ऐसा सिला दिया
अपनी फितरत कैसे कोई बदले यहाँ मधुकर
वो उसी का हो गया जिसने सागर पिला दिया
शिशिर मधुकर
अच्छी और गहन अर्थ लिए आपकी यह कविता काफी सूंदर बन गयी है। बहुत अच्छे शिशिर जी.
Hearty thanks Manjusha ji for your words of appreciation.
बड़े गहरे भावों से सुसज्जित है आपकी कविता ,बाकि देने वाला लेनेवाले से हमेशा बड़ा होता है.ऊपरवाला तो बिन मांगे ही सब देता रहता है,.मेरे विचार से हम सिर्फ अपने ही कर्मों के लिए ज़िम्मेदार हैं .सो माली को फूल खिलाने दीजिये
Thanks Kiran ji for lovely comment
प्यार का मोल नहीं है…..और प्यार में ही बिक जाता है हर इंसान बिना मोल के….बहुत खूबसूरत ग़ज़ल….
I agree with your beautiful comment Babbu ji
बहुत ही खूबसूरत रचना मधुकर जी। मदहोश कर रही है आपकी ये रचना………
So nice of you Sheetalesh for your lovely comment
बेहतरीन गजल ……………………………
Hearty thanks Vijay……..
bahut acche sir…………………
Thank you Maninder………….