क्या आपको नहीं लगता ? कि धीरे धीरे हम ,
अपनी जिंदगी से ह्यूमन टच,खतम करते जा रहे हैं।
पहले जो काम इंसान किया करतेथे ,
वह आजकल मशीन कर रहे हैं ,
हाँ काम तो बखूबी हो रहा है ,
मगर ह्यूमन टच ख़तम होता जा रहा है।
पहले जब हम अपनी कार में बैठ कर ,
शहर में या शहर से बाहर निकलते थे ,
तो जगह जगह पर कार रोक कर,
कभी रिक्शे वाले ,कभी ठेले वाले से,
रास्ता पूछा करते थे .
इस रास्ता पूछने की प्रक्रिया में,
कब वह रिक्शे वाला वाला
वह ठेले वाला हमारा भैया बन जाता था,
तब रास्ता बताने पर हम उसे ,
धन्यवाद देना भी नहीं भूलते थे ,
बिना अपने हैसियत की परवाह किए बगैर।
और आज जब अपनी आलिशान जीपीआर एस से
लैस कार में, सज धज कर
जब सड़क पर निकलते हैं ,
तो इस तरह रुक रुक कर रास्ता पूछना ,
कुछ ज्यादा ही बिलो स्टैण्डर्ड नजर आता है।
क्या आपको नहीं लगता ? कि धीरे धीरे हम ,
अपनी जिंदगी से ह्यूमन टच,खतम करते जा रहे हैं।
ह्यूमन के बजाय कोई हिंदी का शब्द चुनिए तो रचना और भाषागत रूप से ठीक हो जाएगी
मुझे तो नहीं सूझ रहा है इसके लिए कोई और उपयुक्त शब्द अगर आपके पास कोई सुझाव है तो अवश्य बताइये। धन्यवाद आपका सुरेन्द्र जी।
मञ्जूषा जी बहुत खूबसूरत रचना.इस रचना की जान ही ह्यूमन टच शब्द है.. सुरेंद्र यदि रचना पर दोबारा गौर करेगा तो पाएगा की कभी कभी दूसरी भाषा के शब्दों का उपयोग आसानी से मतलब समझ पाता है
Many Many thanks Shishir ji for your encouraging comments.
सही कहा आपने…छोटी छोटी चीज़ों से हम इस ह्यूमेन टच को बढ़ सकते हैं जो पीछे छोड़ आये….बहुत खूब……..
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी आपकी सूंदर प्रतिक्रिया के लिए। आजकल सुबह सुबह बारिश में भीगते सब्जी वालों को सब्जी बेचते और खरीदार को मोलभाव करते सुनती हूँ ,तो मेरा मन विचलित हो जाता है कि आजकल तो वैसे मॉल कल्चर ने उनके काम का भटटा बैठा दिया है।
आप की एक बात से और याद आ गया की हम माल में जाते हैं किसी रेस्तरां में जाते हैं बिना सोचे खर्च करते हैं पैसे उड़ा देते हैं मोल भाव नहीं करते…खुदा ना खास्ता कभी रिक्शा में जाना पड़ जाए तो मोल भाव में आधा घंटे निकल जाएगा… आप अपनी रचना में जब यह बात कहती हैं
धन्यवाद देना भी नहीं भूलते थे ,
बिना अपने हैसियत की परवाह किए बगैर।
और आज जब अपनी आलिशान जीपीआर एस से
लैस कार में, सज धज कर
जब सड़क पर निकलते हैं ,
तो इस तरह रुक रुक कर रास्ता पूछना ,
कुछ ज्यादा ही एल. एस. नजर आता है।
तो यथार्थ के धरातल पर एक दम सटीक हैं….
सत्यता को उकेरती बेहतरीन रचना……………………………