मन मे कुछ उम्मीद जगे है,
नई राहो पर कदम बढे़ है,
सफर कि अभी शुरूआत हुई है,
मंजिल से न मुलाकात हुई है,
मेरा मन हि मेरा गुरू है ,
नई कहानी अब शुरू है ,
आँखो मे कुछ सपने है,
कुछ बेगाने कुछ अपने है ,
मंजिल कि राहे अब अच्छी लगती ह,ै
हर कहानी सच्ची लगती है,
खुशीओ कि बरात है जिन्दगी भी साथ है,
पीछे मुड़कर देखना नही दिल में यह बात है,
कर्म हि मेरा धर्म बनेगा,
लक्ष्य से पहले न कदम रूकेगा,
छाँव नही मुझे धुप चाहिये,
सूरज के कुछ गुण चाहिये,
प्रकृति से यह रजा चाहिये ,
कभी न रूकू यह सजा चाहिये ,
इन्सान हूँ इन्सान बनूँगा ,
मानवता कि पहचान बनूँगा,
कुछ विघ्नो से नही है डरना ,
साहसी कदम मुझको है भरना,
जीवन मे एक हि तमन्ना,
मंजिल कि राहो मे जीना और मरना,
कविता-विनय प्रजापति
Lovely write ……………..
सुन्दर ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
beautiful work …..Good thinking !!
THANKS SIR
खूबसूरत………….
बहुत खूब…………………
बहुत खुबसूरत प्रयास…………,शुभकामना आपको