भस्म कर दी हमने सारी इच्छाएं
हवन की ज्वाला बन छू ली दिशाएँ
धूँआ हो गया अहम का पाला
प्यार ने मुझे कोयला कर डाला
गर्द के अनगिनत पर्तों को कुरेद कर
तप के तोप से दिवारों को भेद कर
दूर हुआ सब दर्द, हरा हर पीडा
चमक उठा जब हृदय का हीरा
तराश कर निखार कर सँवरे रूप
प्रभु प्रेम की पा कर लुभावनी धूप
प्रकाशमान है आत्मा आंनद स्त्रोत लिए
अंतरमन में बसता हीरा है सदा के लिए
आत्मबोध की प्रक्रिया को रेखांकित करती अच्छी रचना उत्तम जी
Many thanks for appreciating
Many thanks Shishir ji. I always look forward to your comments
काबहुत उम्दा भाव उत्तम जी ………आत्म साक्षात्कार कराती खूबसूरत रचना !!
Let us all become Diamonds from wood/coal.
Glad that it could reach you. Thanks for appreciating.
सही कहा आपने….जब आत्मा का प्रकाश होता वो आनंद अमूल्य होता …सदा के लिए संजो कर रखने को….लाजवाब……….
Beautiful expression……………………………..
Thank you Sir for your encourangement