वो लफ्जों को ढाल कर दिलो को तोड़ देता है
मेरा गाँव उसे अब शायरी से जोड़ देता है
मुसलमानों को सियासत पर मिस्रे सुनाता है
मज़हब की बात करता है और शायर बन जाता है.
कभी दास्ताँ जो गुज़री मज़लूमो पर
उन्हें अपना बनाकर उन्हें किससे सुनाता है
वो काफ़िर था जिसने तेरा हक मारा है
दिलो में आग लगाता है और शेर फिर सुनाता है.
तू मुस्लिम है तो तेरी दुहाई सुनाता हूँ
वो जो बीता तुझे फिर से गाकर सुनाता हूँ
वो तंजील, वो अशफ़ाक, मुज़फ्फरनगर याद आता है
आ मुस्लमान तुझे फिर भड़काता हूँ.
वो शहीद हुई मस्जिद की मालवा याद कराता हूँ
ठंडे पड़े दिलो में आग फिर लागता हूँ
इसी मुल्क में इस्लाम का हाल बहुत बुरा है
यही सुना सुना कर मैं शोहरत कमाता हूँ.
वो ज़ुल्मत के पैरोकार है, तू उनको रौशनी देने वाला
वो अपना मुल्क कहते है, तू ये साबित करने वाला
लफ्फाजी है तेरा हुनर है अंधो को सुनाये जा
कोई नहीं है यहाँ मुल्क के संविधान को पढने वाला.
जिस मुल्क में हो उसका कानून तेरा फ़र्ज़ है
कलाम पाक पड़ो पड़ने में क्या हर्ज़ है
ये मेरा हिंदुस्तान है सब मज़हबो से ये बनता है
तो लगा जितना ज़ोर तोड़ने का जितना तुझसे बनता है.
दानिश मिर्ज़ा
बहुत खूबसूरत … हकीकत से वास्ता रखने वाले जज्बातो को अच्छे शब्दो में पिरोया है आपने !!
शुक्रिया… शुक्रिया… हौंसला अफ़ज़ाई के लिए, आगे बहुत अच्छी अच्छी रचना आपको दूंगा। उम्मीद है. आपको पसंद आएगी।
बहुत खूबसूरत …………………………….
मैं कोशिश करूँगा आपको अपने और भी अच्छे लफ़्ज़ों से वास्ता कर सकूँ।
Bahut khoobsurat
Aaj k paristhiti or kavi ka yogdan bahut ache shabdon me sajaya hai aapne