ब़ाढ़ त्रासदी
डूबे गाँव शहर
लोग चिल्लाये !!
नहीं दिखता
पानी का छोर! बस
बढ़ता जाये!!
जड़ जंगम
मिट गये कितने
हो असहाय!!
बिलखती माँ
देख बहता लाल
निकले आह!!
जल तूफान
धराशायी झोपडी
ध्वस्त मकान!!
तैरती लाशें
नोचते चील कौवे
डूबे श्मशान!!
उठे दुर्गन्ध
मरे जानवरों से
व्याकुल प्राण!!
बूझे न प्यास
सड़ा पानी सर्वत्र
जन हल्कान!!
नेता नभ में
उड़ें! देखें तमासे
हसे मुस्काएँ!!
होता घोटाला
राहत शिविरों में
हिय जलाएँ!!
प्रसव पीड़ा
कराहती औरतें
पानी में खड़ी!!
मातम बीच
भूखे बाल गोपाल
मुश्किल घड़ी!!
स्याह रातों में
घूमते साँप बिच्छू
आफत बड़ी!!
है प्रश्न वही
घर छोड़ नदी क्यों
आज यूँ चढ़ी!!
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सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
क्या क्या लिखते आप……कमाल है भाई…..बहुत खूबसूरत….हाईकू……
आदरणीय श्री बब्बू जी, ठीक 6 महीने पहले मै काव्य का क भी नहीं जानता था पर आप जैसे मनीषियो के सानिध्य और माँ पिता के आशीर्वाद से लेखन प्रारम्भ किया। निरंन्तर आप सभी का सहयोग मिला और उसी साहित्य साधना का नतीजा है की कुछ लिख पाता हूँ। आप को अच्छी लगती है तो लेखन को बल मिलता है।
पुनः आपको मै धन्यवाद देता हूँ। आप यूँही मेरा आत्मबल बढ़ाते रहें।
बेहद वास्तविक चित्रण ………..
ह्रदय तल से आभार आदरणीय श्री शिशिर जी
वास्तविकता का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती बहुत ही सुन्दर रचना….सर!!!????
रचना पसंद करने के लिए आभार
Surendra nath jee – koi kuchh bhi kahe aap apni lekhni ki takat ko pradrsit kiya hai – bahut achhey haiku aapne barh piditon ke liye likha hai – jo achha sabki ankheyn kolne ke liye kaafi hai.
आदरणीय श्री बिन्देस्वर जी प्यार भरी प्रतिक्रिया के किये नमन
बेहतरीन हाइकु रचना सुरेंद्र …………….अति सुन्दर !!
करबद्ध प्रणाम सर…. ……….
bahut hi uttam sir………………….
मनिन्द्र जी धन्यवाद आपको रचना पसंद करने के लिए
बहुत खूब अति उत्तम आदरणीय
धन्यवाद अभिषेक जी……