वो खेल खेलते है मजहब के नाम पर
लाशों के ढेर चढके पहुँचते मुकाम पर
हमको न उन की चाल समझ में कभी आई
उन दोगलो की बात कभी हमको न भाई
इतिहास हमें फिर से बदलना ही पडेगा
शूली पे नवजानो को चढना ही पडेगा
राजगुरू भगत सा इतिहास लिखेंगे
फिर से चमन मे अमन कुछ फूल दिखेंगे
फिक्र में अपने देश के रोता रहा मैं
तकिये को आसुओ से भिगोता रहा मैं
पहुंचा हूं आज सोच के मैं उस मुकाम पर
लडना नही हमको राम रहीम के नाम पर
कानों मे एक साथ भजन आजन चाहिए
हाथों में अपने गीता ओ कुरान चाहिए
मंदिर के साथ हमको मस्जिद भी चाहिए
सारे खुदा के बंदे हमे नेक चाहिए
मुल्क का मज़हब हमे एक चाहिए
मज़हब तो केवल एक ही होना चाहिए – इन्सानियत का । आप की पीढ़ी बदल सकती है आज के हालात यदि सब आप की सोच रक्खें तो ।
अच्छी कविता ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति ………अच्छी सोच !!
बहुत खूबसूरत……….
ati sunder sir…………………….
Nice write ……………….
आप सभी मित्रों के सहयोग की आवश्यकता है मै आप सभी के प्रेम का शुक्रगुजार हूं