घनघोर बादल घिरे हुए थे,
चारों ओर अँधियारा था,
भाद्रपक्ष की अष्टमी थी,
जन्म कृष्ण का होने वाला था,
चमत्कार यकायक होने लगा,
मथुरा का मंजर निराला था,
सात जेल के खुल गए ताले,
चिरनिद्रा में द्वारपाल थे सारे,
देवकी वासुदेव की बेड़ियों के खुल गए ताले,
भगवान विष्णु के अवतार रूप में,
जन्मे प्यारे कृष्ण हमारे,
टोकरी में रखा कृष्णा को,
वासुदेव पहुंचे मथुरा के द्वारे,
पहुँचाना था कृष्णा को गोकुल,
शीघ्र वहाँ पहुंचने को थे वो व्याकुल,
तूफ़ान भयंकर उठा हुआ था,
वारिश से रास्ता तंग बहुत था,
शेषनाग ने अपने फ़न को फहलाया,
और भीगने से कृष्ण को बचाया,
गोकुल पहुंचे, वासुदेव जब
सोये हुए थे, सब वहाँ पर,
यशोदा के पास सुलाकर कान्हा को
चुपचाप वासुदेव वापस आये मथुरा को,
इस तरह जन्मे कृष्ण देवकी की कोख से,
पर यशोदा माँ के लाल कहलाये,
यशोदा माँ के लाल कहलाये।।
By:Dr Swati Gupta
बहुत बढ़िया स्वाति जी…….एक कहानी को आपने कुछ पंक्तियों में समेटा…. बहुत खूब
Aapka bahut bahut dhanywad…shirish ji!!!
आनन्दमयी सृजनात्मक रचना। श्री कृष्ण के जन्म का सजीव चित्रण आपकी इस रचना के माध्यम से। रमणीय एवम दर्शनीय है। आपकी ये कविता ना केवल श्री कृष्ण के दर्शन करा रही है है अपितु एक स्मरण है प्रभु श्री कृष्ण का।
Sheetlesh ji … thanks a lot for your nice words…
बहुत ही प्यारा सुन्दर चिंत्रण……..जय हो…..
Aapka bahut bahut dhanywad…Sir!!!
सूंदर भक्तिमय रचना…………………….
Thanks a lot.. Vijay ji!!
स्वाति जी श्री कृष्ण के जन्म को बहुत ही खूबसूरती के साथ दर्शाया है आपने l
Thanks a lot..Rajeev ji!!!
अति सुन्दर भाव डॉ. स्वाति
Aapka bahut bahut dhanywad…sir!!
भगवान् कृष्ण के जन्म का खूबसूरत चित्रण अपने ही अंदाज में बड़ा निराला प्रस्तुत किया है आपने अति सुन्दर स्वाति !
Loads of thanks to you…Sir!!
स्वाति जी बेहतरीन ढंग से आपने पूरी कथा को समेटा है। साधुवाद आपको
Aapka bahut bahut aabhar.
Sir!!!