जब जुबाँ ये साथ न दे,
तन्हाई आराम न दे,
तो आंखें साथ निभाती हैं,
पीर जब दिल पर भार बन जाती है,
तो वो आँसू बनकर आँखों से बह जाती है।
आंसुओं की भाषा नही होती है कोई,
फिर भी दिल की बात समझ जाते हैं,
कभी दर्दे दिल की दास्तां,
तो कभी ख़ुशी का हाल सुनाते हैं,
अमीरी गरीबी का फर्क मालूम नहीं है इसे,
हर इंसान के जज्वातों को एक ही रंग में दिखाते हैं,
इसलिए तो कभी कभी ये आंसू ही सच्ची मित्रता निभाते हैं,
और अकेलेपन में भी अपने होने का अहसास कराते हैं।
By:Dr Swati Gupta
बेहद खूबसूरत…….और अंतिम पंक्तियों में आपने दिल के टीस भरे अरमानों को निचोड़ दिया….एक सार में…वाह….
इसलिए तो कभी कभी ये आंसू ही सच्ची मित्रता निभाते हैं,
और अकेलेपन में भी अपने होने का अहसास कराते हैं।
कविता को सराहने के लिए आपका तहदिल से शुक्रिया…Sir!!!
बहुत ही खूबसूरत कविता “ये आँसू ही तो है तो अकेलेपन में अपने होने का एहसास दिलाते है “
आपका बहुत बहुत धन्यवाद….शीतलेश जी
very nice swati ji…..
आपका बहुत आभार ….श्रीजा जी।।
बहुत ही सूंदर रचना ………………………………आपके लिए “कविजन भाग-३” में एक सन्देश है अवश्य पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ….विजय जी।।।
जरूर सर!!! Very much excited to read it..
स्वाति जी बहुत ही खूबसूरती से आपने अपनी कविता में शब्दो को पिरोया है l बहुत खूब l
Thanks you very much… Rajeev ji…
बेहद खूबसूरत आला दर्जे की रचना डॉ. स्वाति
Aapka bahut bahut dhanywad… Shishir sir!!!
आंसुओ के माध्यम से जीवन के यथार्थ को बड़ी खूबसूरती से परिभाषित किया है आपने ……….बहुत बेहतरीन इन सार्थक रचना के लिये आप बधाई के पात्र है !!
Aapka tahedil se shukriya aur aabhar…
Sir!!!
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने स्वाति जी। क्या कहूँ मै, नतमस्तक हूँ।
Loads of thanks to you…Sir!!!