तेरे परदेस में मेरा एक शहर होगा
बादल होंगे बारिश का मौसम होगा
सूरज की बंदिशों को दिखा आईना
हरकदम साथ तो तेरा हमदम होगा
तेरे परदेस में मेरा एक शहर होगा।
मिट्टी वतन की महकेगी आहटों में
आवारापन कश्ती में वो रोशन होगा
उम्मीद की डोर थामे हैं दुनिया वाले
तेरी सांसों का जज्बों पे रहम होगा
तेरे परदेस में मेरा एक शहर होगा।
जबानों की तकल्लुफ के साये होंगे
फसानों में तुम कभी बेगाने भी होगे
नये जज्बातों की कहानी भी मुमकिन
जो तेरा नूर गलियों में बेकदम होगा
तेरे परदेस में मेरा एक शहर होगा।
तुझको सहला के याद आयेंगी बातें
पहलू में जब नगमों का जिक्र होगा
मय के प्याले में वो आबेहयात कहां
पलकों में छुपा नशा ही बेहतर होगा
तेरे परदेस में मेरा एक शहर होगा।
……… कमल जोशी ……..
बहुत खूबसूरत………..
तेरे परदेश में मेरा एक शहर होंगा का क्या आशय आदरणीय, तेरे देश में तो समझ में आता है
. ……..!
कमल जी रचना आपकी बहुत ही उत्तम है……………….पर सुरेंद्र जी का सुझाव बिलकुल उपर्युक्त है………….परदेश को देश कर ले…………….
वाह साहब बड़ी गजब की पंक्तियां लिखी हैं आपने
बहुत खूब…………………………..
सुंदर सृजन लाजवाब