किरणों का संसार है
मेरी यह पाठशाला
शिक्षा का रंग जहां
नहीँ धर्मों कि माला
गुरु भी ज्ञानी मेरे
बहती ज्ञान की धारा
आदर्शों का द्वार है
एकता समता का सार है।
बचपन की यादों को
आज फिर से संजोना है
रिमझिम सावन में
खुद को आज भीगोना है
बदले वक़्त में खोया
जो बस्ता मेरा पुराना
याद आई किताबें भी
आज उन्हें फिर पाना है।
स्याही से रंगे हाथों में
कागज की बनाई नावों में
सरल हिन्दी के भावों में
अंग्रेजी गणित के सवालों में
आज एक बार फिर
लौट आना चाहती हूं मैं
चित्रों में रंगों की फुहारों में
अपनी पाठशाला की दीवारों में।
वो गुरुजी की छड़ कहां भूली
रोती थी दुखती थी हथेली
वो शरारतें वो मस्ती
याद आती हैं सखी सहेली
हूं मजबूरियों में कैद मगर
फिर से जीना चाहती हूं
वो बेफिक्री अपने बचपन की
आज की अपनी पाठशाला में
मस्ती की इस पाठशाला में॥
……. कमल जोशी …….
जोशी जी बचपन और स्कूल के दिन सबकी जिंदगी के महत्वपूर्ण पल होते है। आपकी यह रचना उसी पल को याद दिला रही है। बहुत ही खूबसूरत।
thank you शीतलेश ji
बहुत खूबसूरत……….
जोशी जी बेहतरीन, …….
बहुत ही उम्दा………………..