“मेरी किताब”
किसी के लिए महज पन्नो की गठरी,
तो किसी के लिए कागज का टुकड़ा है किताब,
पर मेरे लिए तो मेरी दोस्त है मेरी किताब,
कोई कहता शब्दों का जाल, तो किसी के लिये मुसीबत का काल,
पर जो जीवन भर साथ निभाये वो हमसफर है मेरी किताब,
किसी के लिए तकिया तो कभी कुर्सी है किताब,
पर मेरी तो शोभा बढाती है मेरी किताब,
किसी का मन बहलाये तो किसी को गर्मी से राहत दिलाती है किताब,
बारिश की छतरी तो ठण्ड में लकड़ी बन जल जाती है किताब,
पर जो अज्ञानता के अन्धकार में ज्ञान की रौशनी बिखेरे, ऐसी है मेरी किताब,
मुझे एक सच्चा इंसान बनाती है किताब, किसी के लिए सिर्फ किताब,
पर मेरे लिए तो मेरी सच्ची दोस्त है मेरी किताब I
शीतलेश थुल !!
अति सुंदर………………………………………..
बहुत बहुत धन्यवाद सिंह साहब।
बहुत ही खूबसूरत…….
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
bahut hi achi kavita
बहुत बहुत धन्यवाद तमन्ना जी।
अति सुंदर……………………………..
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी।
बहुत ही सुन्दर किताब भावो से भरी……….
बहुत बहुत धन्यवाद मनी जी।
किताबो से अच्छा दोस्त कोई नहीं जो ज्ञान भी देती हैं और बुद्धिमान बना के सम्मान भी दिलाती हैं ………………………………………. बहुत ही बढ़िया शीतलेश जी !!
बहुत बहुत धन्यवाद सर्वजीत जी।
किताब पर आधारित आपकी रचना इसके हर पहलू को छूने की कोशिश करती लाजबाब
उम्दा शितलेश जी
आपकी इस सकारात्मत्क प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार कुशक्षत्रप साहब।