“अजीब लोग”
कांच के महलों में रहते, मेरे घर पत्थर मारते है लोग,
ना जाने क्यू ऐसा करते है लोग,
उठता धुआं परेशान करता उन्हें,
मेरे घर के चूल्हे की आग बुझा कर, दम भरने लगते है लोग,
ना जाने क्यू ऐसा करते है लोग,
कचरा पेटी देख कूड़ा से निशाना लगाते,
चूक जाये निशाना जो, मेरे घर सामने कचरा फैलाते है लोग,
ना जाने क्यू ऐसा करते है लोग,
बाएं हाँथ मैं चलता हरदम, धक्का मारते है लोग,
अँधा काना संज्ञा देते, गाली देते है कुछ लोग,
ना जाने क्यू ऐसा करते है लोग, ये अजीब लोग II
शीतलेश थुल !!
बहुत सुंदर कटाक्ष…………………………..
आपका आभार सिंह साहब।
समाज व लोगो के दिलों में प्रेम की कमी को बड़ी खूबसूरती से आपने उठाया है
एक छोटा सा प्रयास किया है। सहृदय धन्यवाद मधुकर जी।
bahut bahut sunder kataksah shitlesh ji…………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद मनी जी।
सब अपने बारे में सोचते हैं कोई किसी दुसरे के बारे में नहीं सोचता ………………. बहुत अजीब हैं लोग, बहुत बढ़िया शीतलेश जी !!
बहुत बहुत धन्यवाद सर्वजीत जी आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये।
लोग आजकल लेना जानते है, देना नहीं! जब हम किसी से सम्मान चाहे पर उसको न दे तब तक हमारा सोच को कामयाबी नहीं मिल सकती
बेहतरीन उम्दा
आपकी सोच को मेरा सलाम है कुशक्षत्रप साहब। एक बार पुनः धन्यवाद आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु।
लाजवाब सोच से लाजवाब कटाक्ष…………
आपका आभार शर्मा जी।
बहुत खूबसूरत रचना !!
बहुत बहुत धन्यवाद आनंद सागर जी।