तिरंगा तेरी चमक पर साये है
जब नमकहराम देश में आए है
आज उठा फिर दर्द मिले घावों का
हुआ था खाका खाक जब बटे थे भारत पाक
अंग भंग आजादी की जंग
शहीद-ए-आजम तेरी शहीदी का रंग
पड गया फीका ,जब गीत द्रोह के गाए है
तिरंगा तेरी चमक पर साये है
क्या हुआ असर गांधी तेरे सबक का
पड गया स्वाद फीका दाण्डी तेरे नमक का
देख न पाते आप ये शर्मनाक मंजर
भारत मां की पीठ में देशद्रोह का खंजर
आज दिल्ली में है ये हल्ला
भारत तेरे टुकडे होंगे इन्शाअल्ला-इन्शाअल्ला
किया है ये जिसने भी नहीं कोई पराये है
तिरंगा तेरी चमक पर साये है
खुदे घावों को भर दिया नमक से
क्या मेहरूम होगा तिरंगा अपनी चमक से
अखंडता की चमक तिरंगे के संग रहेगी
उनकी हिम्मत कैसे होती है यह कहने की
भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी- जंग रहेगी
हे मां भूमि ये तूने कैसे कटीले झाड उगाये है
तिरंगा तेरी चमक पर साये है
ग्रहों की बदली चाल जो उठा दिल्ली में भूचाल
क्या नहीं रंग रुधिर का लाल
भारत मां की कोख ने कोटिक वीर जाये है
दुश्मन की संगीनों के बारूद हमने सीने पर खाये है
सियाचीन की सर्दी में लोहे के चने चबाये है
क्या आपको फिर भी लगता है
तिरंगा की चमक पर साये है
WRITTEN BY BHANU PRATAP ‘BEASAR’
भानु जी सच लिखा है आपने, पर आशा और निराशा के बीच बहुत कुछ अच्छी भी बाते है।
aapki salah mankar main asha aur nirasha ke beech ki chhupi duniya se sakshatkar avashya krunga
आपने अपने भावों को सुन्दर तरीके से लिखा है…..बहुत खूब……….
bahut behtarin likha aapne………………………..
बहुत खूबसूरत………………….
बहुत ही सुंदर रचना ………………. ।
बहुत खूबसूरत भानु प्रताप ..आजादी का विश्लेषणात्मक परिदृश्य प्रस्तुत किया है आपने !!
app is blog par bahut senior hai aur main bilkul anari yeh meri pehli rachna thi jise aapne sraha iske liye main aapka abhar prakat kkarta hun