तू सबका मुकद्दर, तू सबका पयम्बर,
मैं ढूँढू तुझे हर, कदम-दो-कदम पर,
दुनिया का कण-कण तुझही से बना है,
ये चंदा ये सूरज, सब तुझमें समा है,
कहे जो भी दुनिया, झूठा है सब कुछ,
झूठा है सब कुछ,सच है यही पर,
तू सबका मुकद्दर, तू सबका पयम्बर;
मुझको तू ऐसा रोशन बना दे,
मुझे रोशनी से कुछ ऐसा सजादे,
हो रोशन मुझही से,हर लम्हा,घड़ी,पल
सब और सबका, आने वाला हर एक कल,
मैं गुजरूं जहां से, अन्धेरा हटा दूँ,
हर दुख,हर दर्द, जहाँ से मिटा दूँ,
हर एक घर में कुछ ऐसा जलूं मैं,
करता रहूँ उसे रोशन रात-दिन भर…..
तू सबका मुकद्दर, तू सबका पयम्बर,
मैं ढूँढू तुझे हर, कदम-दो-कदम पर;
अच्छा प्रयास है…….
बहुत खूबसूरत…………………………….