मिटटी की पहली पुकार, पर बरसा का अभिनन्दन है
इंद्रधनुष के सप्तरंग से , बर्षा का शतबंदन है
मिटटी की पहली पुकार, पर बरसा का अभिनन्दन है …….
तरु – पल्लव जो था मुरझाया , मानो मधुर – मधुर मुस्काया
जलती धरती की काया से , मेघों का आलिंगन है
मिटटी की पहली पुकार, पर बरसा का अभिनन्दन है …………
बर्षा की मधुरिम बेला पर, दिल में उमंग जग जाती है
आज प्रकृति आनंदित होकर , अपनी छटा बिखराती है
सौंधी खुशबू की सुगंध से , माटी मानो चन्दन है
मिटटी की पहली पुकार, पर बरसा का अभिनन्दन है…………
रिमझिम – रिमझिम बरसे पानी , नभ में है पंछी गान करे
फर – फर करके उड़े पतंगे , धरती पर पपिहा पान करे
टर्र – टर्र मेढक के बोले , धरती में स्पंदन है
मिटटी की पहली पुकार, पर बरसा का अभिनन्दन है
Thank’s ,
“KRISHNA”
बहुत खूब………….
बेहतरीन कृष्णा जी…….. पढ़कर मजा आ गया
लाजवाब सर………………..
बेहतरीन शब्दों का संगम है आपकी रचना
बहुत खूब…………………………..