पत्ता गिरा
धीरे से खिसका
और सोचा
फिर घबराया
थोड़ी देर बाद
नम हो गई आॅखें।
रिस्ता-नाता
टूटकर अलग हो गई जिन्दगी
तद्उपरांत
शिसकता रहा पेड़
सोचता रहा निरंतर
निरूत्तर।
कभी वो अपना था
और आज
थोड़ी देर पहले
हवा में
इधर.उधर
न जानें
कहाॅ-कहाॅ उड़ जायेेगा।
किधर-किधर भटकेगा
देखता रहा शून्य में
उठाकर ले जायेगा कोई
इंधन बना लेगा
जला देगा चूल्हे में।
या यॅूही
टूट-टुटकर
मिट्टी में मिल जायेगा।
मेरे गर्भ से जन्मा
बड़ी प्यार से
झूले झूला
गोद में पला
आंधी तुफानों से लड़ा
आज
मेरे रहते
उर्म पूरी हो गई उसकी।
वाह रे जिन्दगी
उपर वाले का खेल
अद्भुत लिला
माॅ की आॅचल सेे
कैसे तूनें
छीन लिया हमसे।
मेरा मुन्ना
मेरा प्यारा सा लाल
प्राण से प्यारा
बिलकुल ही
अबोध
हाय रे पत्ता
हाय रे पत्ते की जिन्दगी।
Writer Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth 10.10.1963
Shivpuri jamuni chack Barh RS Patna (Bihar)
Pin Code 803214
sunder chitran ek ma se uski aulad ke bichdane ka dukh bakhubi pesh kiya hai aap ne……………………..
very very thank you sir -we have sorry to late contacting
Yes Bindu jee life is like that only. Lovely expressions
Madhukar sahab we have sorry to late contacting. thank you.
बिन्दू जी पढ़कर एक बार मै तो कही खो सा गया।
आपकी लेखनी दिल में उतर गयी
बेहतरीन भाव प्रदर्शन
Aap ke reply ke liye bahut bahut thank you but sorry to information i have late contacting with you.
बहुत खुबसूरत बिंदु …..आपकी रचना के भाव ह्रदय से निकलकर ह्रदय तक पहुचते है यह आपकी लेखनी की विशेषता है ।
D K Sahab thank you – but sorry to inform you that i have late contacting with you.
वाह क्या बात है, पेड़ के पत्ते की जीवन गाथा लिख दी …………..बहुत खूब ………………………… बिंदू जी !!
Sarvajit sahab we have sorry to late contacting . thank you.