धरती माँ की पुकार
मच गया है हाहाकार
धरती मां की सुनो पुकार
मत काटो तुम पेंड़ो को
बंद करो ये अत्याचार
होती है तकलीफ मुझे
जब काटते तुम पेंड़ो को
होती है तकलीफ मुझे
जब नदियों में तुम
फेंकते हो गंदगियो को
अशुद्ध हो रही है हवाएँ
वातावरण हो रहा जहरीला है
खत्म हो रही हरियाली
भूमी हो रहा रेतीला है
मत खेलो तुम इतना मुझसे
कि जीना तुम्हारा
मुश्किल हो जाए
करो तुम कुछ एेसा कि
धरती तुम्हारी स्वर्ग बन जाए
पेंड़-पौधे झील-नदियां
ये है एक अनमोल उपहार
सहेज के रखो तुम इसे
मत करो इसका दुर्व्यवहार
अब भी वक्त है संभल जाअो तुम
नहीं तो भुगतोगे इसका दुष्परिणाम
मिट जाएगी सारी धरती
अगर ना सुनी मां की पुकार |
पियुष राज , दुधानी ,दुमका |
बहुत सही कहते हैं आप…….जितनी जल्दी संभले सबके लिए अच्छा है…..बहुत खूबसूरत………
बहुत बढ़िया कहा आप ने ………………….
Bahut hi sundar kavita…sir
Sahi hai bandhu….