तू नाज़ुक सी , चंचल सी , हिरनी की तरह
तेरी ज़ुबाँ मीठी है बहुत मिश्री की तरह …
मेरे मन में तेरी मूरत सज गयी ऐसे..
जैसे तू हो निर्मल, छलकती नदी की तरह …
तू है सपना मेरा , या हकीकत ज़माने की है
तू है मेरी ,या फिर अमानत मेरे फ़साने की है
तेरे कदमो में पड़ी है मेरी सारी खुशियां ..
मेरी ज़िद्द ,मेरी चाहत और मेरी सारी दुनिया ..
तू मेरी है ,मेरी कहानी है बस तू …
कोई और नहीं बस मेरी दादी है तू ……..
हा हा हा….दादी को हिरनी बना दिया…..बहुत खूबसूरत भाव……….
dadi bhi toh hirni hi hoti hai …..bus nazar nazar ki baat hai , log jawan logo mein khubsoorti dhondhtey hai mujhe toh daadi meinkhubsoorti nazar aati hai …..!!!waise meri dadi nahi ye merey betey ki daadi hai aur jo wo kehna chata hai meine shabdo mein piro diya
मैं आपकी बातों से बिलकुल सहमत हूँ…मैं जस्ट ऐसे ही जोवियल सा लिखा था….और कुछ नहीं…मैंने तो ऐसे ऐसे बजुर्ग देखे हैं जिनकी झुरियों में से नूर बरसता है और जवानी उसके आगे शर्मिंदा हो जाए…इस लिए मैंने हिरनी को सिर्फ जवान के साथ जोड़ने का मकसद नहीं था…बुरा लगा गलती माफ़…
arey sir aap mujhe sharminda kar rahe hai maafi mang kar .mein toh mazaak kar rahi thi …but sach kahoon toh ye bilkul sahi hai ki kabhi kabhi bujurgo mein ek bhgwaan ka noor sa barsta hai aur aisa lagta hai jaisey hum bhagwaan se mil rahe ho
दादी के समर्पित खूबसूरत भाव !!
दादी के लिए ये भाव आपके सचमुच सराहनीय है।