क्यू लगे रुखा सा कुछ तो कमी सी है !
जिंदगी में तेरे बिन, कोई कमी सी है !!
नीरस मन शुष्क तन, सूरत हुई बंजर
फिर भी अधरों पे ढली कुछ नमी सी है !!
थकावट से चूर हूँ पर अभी मैं थका नही
तन में साँसे अभी जरा जरा थमी सी है !!
लहू का दौर कुछ कमतर नजर आता है
कड़क तन में नब्ज लगती अब जमी सी है !!
शोभा तो तुम ही हो इस अहले चमन की
बिन तेरे गुलशन में उदासी लगे रमी सी है !!
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डी. के, निवातियाँ [email protected]
वाहहहहहहहह बहुत खुब निवातियाँ’ जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक …………..!!
खूबसूरत ग़ज़ल निवतियां जी
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी …………..!!
क्या बात है निवातियाँ साहब। किसी को अपने ही अंदाज में याद करना कितना अच्छा लगता है।
उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए अनेको धन्यवाद शीतलेश ……..!!
बेहतरीन ग़ज़ल की कमी थी…हा हा हा…..बेहतरीन…..कमाल है कलम का…सोच का….और आपकी स्मार्टनेस का जिसने नेट भी परेशान कर दिया हा हा हा…..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका बब्बू जी …………..ये तो आपके शब्दो की जादूगरी है जनाब जिसको जो चाहे बना दे ………हाहाहाहा .!!!
very beautiful lines……
आपकी प्रथम प्रतिक्रिया का ह्रदय से स्वागत श्रीजा आपका !!
सर, मेरी गजल खो गयी है ढूंढने में थोड़ी मदद कीजिये…………………….अति सुंदर ………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद विजय आपका ………….. हाहाहाहा ….ग़ज़ल खो गयी या चोरी हो गयी …………कहो तो रिपोर्ट दर्ज करा दे !
क्या बात है निवातिया जी अनोखा अंदाज
बहुत खुबसूरत गजल……………….. ।
रचना पसंद करने के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका काजल ।।