ख़्वाहिशें भूल कर, ख़्वाबो से दोस्ती कर,
अँधेरे पास ना आएंगे, चरागों से दोस्ती कर |
घूमते हैं यहाँ ..नकाब पहने लोग,
तू दिल को देख न चेहरो से दोस्ती कर |
एक रोज छोड़कर सब कुछ, किसी बगीचे में जाके बैठ,
वहाँ फूलो से मिल, ख़ुशबुओं से दोस्ती कर |
तोड़कर बेड़ियाँ सारी, आसमानी होना है अगर,
परों की तम्मना छोड़, हौसलो से दोस्ती कर |
ढूंढ लेना जमीं तारे… जहाँ सारे ‘मोहन’ ,
माँ बाप सा न मिलेगा चाहे, कितनो से दोस्ती कर |
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बहुत खूब………………..
शुक्रिया जी ….
बहुत बढ़िया सर …………………………
बहुत बहुत धन्यवाद् ….
बहुत खूब……….…….
धन्यवाद् जी ….
बहुत खूब………………………..
शुक्रिया सर ….
अति सुन्दर ………!!
बहुत बहुत शुक्रिया ….
वाह भाई बहुत ही अच्छा लिखा है।।।