वक़्त को दीवार पर टांग रखा है
और जब देखता हूँ शक्ल उसकी
जैसे कोई बेबस.. तिलमिलाता हुआ
लाख मजबूरियाँ..पर जिंदगी बसर करता
फिर रात के सन्नाटों में आकर मुझसे
वो मेरे कान में कुछ फुसफुसा के कहता है
अपनी उम्र का दम घुटते सुना है तुमने??
और टिक-टिक सी इक आवाज़ सुना जाता है..
– सोनित
Beautiful ………………
धन्यवाद शिशिर जी.
बेहतरीन ……………
शुक्रिया अभिषेक जी.
बहुत बढ़िया ……………………………………. सोनित !!
शुक्रिया सर्वजीत जी……..
बेहतरीन… …………..
धन्यवाद अल्का जी.
वाह…….बेहद खूबसूरत…….
बब्बू जी..धन्यवाद….
Nice……..poem…..,
शुक्रिया मीना जी.
बहुत सुंदर – – – – – – सोनित जी ।
धन्यवाद काजल जी…………