★★मरुभूमि और महाराणा★★
पंद्रह सौ चालीसवाँ,कुम्भल राजस्थान ।
जन्म हुआ परताप का,जो माटी की शान ।।
माता जीवत कँवर औ,तात उदय था नाम ।
पाकर ऐसे वीर को,धन्य हुआ यह धाम ।।
पन्दरा सौ अड़सठ से,सत्तानवे के बीच ।
अपने ओज प्रताप से,मेवाड़ दिया सींच ।।
हल्दीघाटी युध्द में,चेतक हुए सवार ।
महाराणा प्रताप को,छोड़ा नाले पार ।।
ज्येष्ठ शुक्ला तीसरी,पूजे राजस्थान ।
महाराणा प्रताप का, जन्म विकरमी जान ।।
महाराणा कि वीरता,देख मुगल थे दंग ।
ओजस्वी परताप था,नीले चेतक संग ।।
इब्राहीम लिंकन लिखा,जब वह अपना लेख ।
छाती चौड़ी हो गयी,ओज वीर का देख ।।
लिंकन बोले मात से,में हूँ राजस्थान ।
क्या लाऊ माता बता,धरा गुणों की खान ।।
माता बोली कुछ यूं,सुन लिंकन यह आप ।
वीर धरा वो पावनी,जहाँ हुआ परताप ।।
थोड़ी सी तुम रेत को,लाओ अपने साथ ।
वीर धरा को नमन करुँ,फेर झुका कर माथ ।।
वीर धरा के वीर को,देख युद्ध में वार ।
एक बेर में मार दे,घोडा और सवार ।।
कवच भाला ढाल सभी,हुए पाँच मन पार ।
लाद वजन वो वीर ये ,तब करता था वार ।।
महाराणा कि ओर से,सैनिक बीस हज़ार ।
जा भिड़े सभी फौज से,करे वार पे वार ।।
हल्दी घाटी युध्द में,सैनिक बीस हज़ार ।
हज़ार पिच्यासी लड़े,दिया सभी को मार ।।
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ज्येष्ठ शुक्ला तीसरी,जन्मा वीर प्रताप ।
चाँद रूप मुखड़ा लिए,ओज भरा ज्यो ताप ।।
हल्दी घाटी युध्द में,सैनिक बीस हज़ार ।
जा भिड़े सभी फ़ौज से,करे वार पर वार ।।
मातृभूमि के प्रेम में,खायी उसने घास ।
छोड़ दिया घरवार सब,छोड़ा निज आवास ।।
महाराणा के कोप से,अकबर सो नही पाय ।
नींदों में लगता उसे,वीर मार नहि जाय ।।
पांच मन का भार लद,लड़े युध्द वह वीर ।
एक बेर के वार से,सीना देता चीर ।।
वीर धरा का लाल था,सबसे बड़ा था मान ।
शीश झुका सकता नही,वीर वह स्वाभिमान ।।
◆ एक साथ आनंदानुभूति के लिए ◆
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”©
+91 84 4008-4006
नविन जी उत्कृष्ट भाव के साथ राणा प्रताप जी पूरी जीवनी आपने बड़े ओज के साथ लिखी है,पर यह दोहा नहीं है। दोहा की कुछ निश्चित मात्रा होती है। आप इसे कविता या रचना नाम दें तो उचित होंगा।
आदरणीय इनमे लय दोष हो सकता है मात्रा दोष बमुश्किल कोई टंकण त्रुटि हो सकती है,
आपसे निवेदन है कि मुझे दोष अवगत करावें ।
अन्य दोहे भी देखे
बहुत खुबसुरत ओजस्वी रचना …….दोहे स्वरूप मात्रात्मक मानको पर खरा उतरना आवश्यक है ।
आदरणीय निवतियाँ महोदय जी, यह सब सृजन महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर सृजित किया, आदरणीय इनमे लय दोष हो सकता है,
मात्रा दोष केवल टंकण त्रुटिवश
बहुत खुबसुरत रचना …
आभार आदरणीय अभी शर्मा जी
बेहतरीन रचना . महाराणा जी को इससे बड़ी श्रधांजलि नहीं हो सकती .
नमन आभार आदरणीय मधुकर जी
वाह……लाजवाब …….
नमन आभार सी एम् शर्मा जी