कह दूँ अगर इक-बात तो नाराज तो न होगे . . .
जाम लेकर हाथों से तो न छलकाओगे ,
अपने अधरों से जिसे तुमने लगाया है ,
उस प्याले की हकीकत तो न भूलोगे ,
कह दूँ अगर…..
आँखो में मैने देखी है, इक अजब सी कशिश,
जो ठहरने न देगी,उस घड़ी तक,
चढ़ चुका है, निशा का पहला पहर,
कह दो तो साथ दूँ ,गन्तव्य तक,
अपने घर का पता तो न भूलोगे ।
कह दूँ अगर…..।।
– आनन्द कुमार
आनंद रचना के भाव बहुत खुबसूरत है शब्द संयीजन भी कमाल है…. गजल विथा पर कार्य करने कि आवश्यकता है ।
बहुत बढ़िया …………………. आनन्द !!
आनंद जी यह गजल नहीं है, अप इसे कविता ही कहे तो सराहनीय होंगा!
Thanks! !!!! sudhar kiya kripya dobara nazar karein. .
Aap sabhi ka bahut bahut dhanyabad. ..
Sundar bhaav kavita ke………
Dhanyabad !!! Sharma ji
सुंदर – – – – – !!
Dhanyabad ‘kajal’ ji…