शीर्षक : विदाई गीत
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ।
पलकों में भर कर के आंसू,
बेटी पिता से गले मिली है ।
फूट – फूट के बिलख रही वो-२
बाबुल क्यों ये सजा मिली है,
छोड़ चली क्यों घर आंगन कू,
बचपन की जहाँ याद बसी है,
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ,
बाबुल रोय समझाय रह्यो है
बेटी ! जग की रीत यही है,
राखियो ख्याल तू लाडो मेरी,
माँ – बाबुल तेरे सबहि वही है
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ।
नजर घुमा भइया को देखा
भइया काहे यह गाज गिरी है,
में तो तेरी हूँ प्यारी बहना,
यह अब कितनी बात सही है-२
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ।
भइया सुनकर बोल बहन के,
अंसुअन की बरसात करी है,
रोतो रोतो वह भइया बोलो
बहन विधि का विधान यही है,
बीत रही जो तेरे दिल पे बहना
“मेरा” भी कुछ हाल वही है
कैसे बताऊँ तोहे कैसे बुझाऊँ
नियति की यह विकट घडी है,
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है
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✍?नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
+91 84 4008 – 4006
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*संक्षिप्त परिचय*
नाम : नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
पिता : श्री रमेश चंद शर्मा
जन्म : 10 मई 1991
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी)
पता : देव औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान
के पास भगवती कॉलोनी, बयाना
(भरतपुर) राज•,पिन :321401
संपर्क :
+91 84 4008-4006
+91 95 4989-9145
ईमेल : [email protected]
दुनिया रीत ही यही है…..हाँ कुछ जगहों पे दुल्हन दूल्हे को ब्याह के घर ले जाती है……आपके भाव….बहुत सुन्दर वे प्यारे है…..
हार्दिक आभार आदरणीय सी एम शर्मा जी
बहुत ही खूबसूरत रचना आपकी ।
स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार
अच्छी गीत रचना…… ।।
हार्दिक आभार आदरणीय निवातियाँ डी. के. JI
नवीन जी बहुत सुंदर ,ज़िंदगी का एक ऐसा मोड़ जब लड़कियाँ पराई हो जाती हैं ,बड़ा सुंदर चित्रण किया है आपने ,,,,,,बधाई
THANKS A LOTS OF RESPECTED kiran kapur gulati JI
हार्दिक आभार
नवीन जी भाव पक्ष बेहतरीन………………. कला पक्ष पर थोड़ा प्रयास करना है…….कुछ जगहों पर typing mistake भी है……….
Thanks A lots of respected सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप ji, please tell me where is the mistake.
हार्दिक आभार JI
खूबसूरत रचना ……………
hardhik aabhar Shishir “Madhukar” ji
बहुत सुन्दर…………………….दुनिया रीत ही यही है….
thanks विजय कुमार सिंह ji
खूबसूरत रचना ……………
आ•शर्मा जी आभार