थी वो बहुत शांत सी
जैसे समंदर में कोई लहरों को समेटे,
बातें उसकी मनमोहक ऐसी
की एक साथ कई फूल खिल उठे
भोली आँखों में उसके आंसू ऐसे
जेसे हजारों प्रश्न पूछ रहे हों दुनिया से
कुछ राक्षस इस दुनिया में छिपे बैठे
जो उसकी रूह को तार-तार कर गए
दो जहानों के दर्द थे हर बात में उसकी
एक अनजानी चुभन थी जज्बात में उसकी
सौ बार मरेंगे वो दरिन्दे
एक एक आह में उसकी
इस दुनिया को जला दूँ या खुद को जला लूँ
उन दरिंदों कि सजा खुद को कैसे दूँ
उसके कानों में बस यही बातें थी गूंजती
आखिर मै ही क्यूँ……..
मरहम लगाने तो सब आये बाद में
पर उस वक़्त मदद करने कोई न आया
वो तो खुश थी जीवन में अपने
भगवान् उसे तूने ऐसा दिन क्यूँ दिखाया
पापा की परि कहती थी खुद को
अब तो नजरे भी न मिला पाती वो
भाई के साथ खेले तो गुजरा जमाना हुआ
अब तो उससे भी नजरे चुराती वो
गुमसुम सी बैठी देखे जा रही खिड़की के बाहर
शायद खुदा दे दे जवाब ऊपर से आकर
आखिर मै ही क्यूँ……
very emotional description of the victim
thanks madhukar ji
बहुत ही लजवाब शव्दो में अपने यह बात कही हमे अपनी समाज की सोच बदलना होगा
जी बिलकुल….. बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बढ़िया अंदाज़ में आपने एक पीड़ित की सोच का चित्रण किया |
thanku mani ji
श्रीजा जी आपने पीड़िता के दर्द को बखूबी बयां किया है…………इसी से जुडी मेरी रचना “शर्म करो, अब शर्म करो” भी पढ़ें. समाज की बिगड़ती अवस्था सभी नेकदिल इंसानो के लिए चिंता का विषय है.
thankyou vijay ji
बहुत ही अच्छी रचना मैम । आपके शब्द सोचने को मजबूर करते है ।
thanku kajalsoni ji…..
ह्रदय की वेदना की मर्मश्पर्शी व्यथा को कभुखी पेश किया आपने ………रचना के माध्य्म से नजनदार प्रश्न रख छोड़ा जो वातस्त्विक रूप में विचारणीय है !!
जी धन्यवाद…
एक नारी होने के नाते मैं इस वेदना को भली. भांति. समझ. सकती हूँ. और इसकी ज़िम्मेदारी सब माताओं की भी समझती. हूँ और समाज की भी .संस्कार बच्चों में आछे. जाने. चाहियें . नारी कोई. मन बहलाने की वास्तु नहीं बल्कि एक आछे समाज के निर्माण. में बराबर की हिस्सेदार है और जनम देने वाली भी उसके कई रूप हो सकते है .माँ बहन , प्रेयसी ,बेटी . सभी सम्मान की बराबर हक़दार. हैं . बहुत ही संवेदनशील ममस्पर्सी कविता है हर रोज़ ऐसी खबरे मिलती रहती हैं. समाज में जागरूकता की आवश्यकता है. बहुत सुन्दर कविता . बधाई हो
बहुत सही कहा आपने किरण जी…
एक नारी की वेदना को दर्शाती रचना ……………………….. बहुत ही बढ़िया !!
thank you sir…..
नारी की वेदना को आपने अपनी रचना के माध्यम जो भाव लिखे है मै उसको अपनी भी शब्द देता हूँ………….
बहुत अच्छी बात आपने कही है……………………
thank you….
भवनाओ की सरिता में आक्रोश की लहरे उठनी स्वभाविक है
रूह को झकझोरने वाली बेहतरीन कविता
thanku sir…..
वेदना को अपने बहुत ही मार्मिक ढंग से पिरोया है…बहुत खूबसूरत……
बहुत बहुत धन्यवाद….