Homeअज्ञात कविखिड़की खुली खिड़की खुली RAVINDRA KUMAR RAMAN अज्ञात कवि 03/08/2016 6 Comments अर्ज किया हैं खिड़की खुली जुल्फें गिरी सामने हुस्न का दिदार था वाह वाह………… फ़िर क्या ? फ़िर क्या जुल्फें हटी किस्मत फूटती वो नहाया हुवा सरदार सरदार था ! …….ओन्ली फोर स्माल….. Tweet Pin It Related Posts कड़वा सच – अनु महेश्वरी ध्वनि (प्रार्थना मुक्ति का द्वार) A Prayer Path Of Liberation “सिगरेट……( Cigarette) About The Author ravindra.kumar i am ravindra kumar from bihar. i am student of engineering and this my hobby to write a poem and love story 6 Comments Kajalsoni 03/08/2016 वेरी फनी –”——– ??? Reply RAVINDRA KUMAR RAMAN 04/08/2016 बहुत बहुत धन्यवाद आपका…..???? Reply सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप 04/08/2016 nice…………… funny ……………. Reply RAVINDRA KUMAR RAMAN 04/08/2016 धन्यवाद सर मनोबल बढ़ने के लिए Reply विजय कुमार सिंह 04/08/2016 Very nice and funny…………………. Reply C.m.sharma(babbu) 04/08/2016 बेहतर है आप व्यक्ति विशेष की किसी भेष भूषा या उसके जो अपने धर्म के हिसाब से जो पहरावा है चाहे वो बाल हों कटाक्ष न करें….मजाक न करें….कोई भी कम्युनिटी का हो चाहे वो…..धन्यवाद….. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
वेरी फनी –”——– ???
बहुत बहुत धन्यवाद आपका…..????
nice…………… funny …………….
धन्यवाद सर मनोबल बढ़ने के लिए
Very nice and funny………………….
बेहतर है आप व्यक्ति विशेष की किसी भेष भूषा या उसके जो अपने धर्म के हिसाब से जो पहरावा है चाहे वो बाल हों कटाक्ष न करें….मजाक न करें….कोई भी कम्युनिटी का हो चाहे वो…..धन्यवाद…..