बुढ़ापा
बीत गए दिन जवानी के
मेहनत और क़ुरबानी के
जब तक था स्वार्थ
तब तक रहे साथ
अब बेटा नही कहता पापा
जब से आया है बुढ़ापा
दिल में एक अरमान था
बेटे पर अभिमान था
सोचा था बुढ़ापे में
बनेगा मेरा सहारा
पर मेरी किस्मत ने
ये नहीं स्वीकारा
बेटे ने साथ छोड़ा
सभी ने मुझसे मुँह मोड़ा
क्या है मेरी गलती
कोई मुझे बताए
बूढ़े माँ-बाप को
बेटा क्यों सताए
तू भी एक दिन बूढ़ा होगा
ये क्यों भूल जाता है
जो जैसा करता है
वह वैसा ही फल पाता है
अजीब हो गयी है दुनिया
अब प्यार से कोई नहीं खिलाता
अब बेटा नही कहता पापा
जब से आया है बुढ़ापा
पियुष राज,दुधानी, दुमका।
(Poem.No-25) 23/07/2016
Very nice sir??
An important issue has been raised.
बहुत खूब लिखा है आपने… ऐसे ही प्रगति करते रहें.. शुभकामनाएं
बहुत अच्छे…………।।
बेहतरीन पियूष राज जी
बुढ़ापा पर मेरी भी रचना का अवलोकन कर टिप्पणी करें आप!
बहुत खूबसूरत…….
प्रतिक्रया देने के लिए सभी को धन्यवाद