बलात्कार पर आज मैंने रचना एक पढी
जिसमे कहा गया सजा कर दो तुम कड़ी
इससे मन में पैदा होगा कुकर्मियों के डर
फ़िर नोच न पाएगा कोई बुलबुलों के पर
कुछ हद तक तो ये सभी सुझाव हैं उत्तम
पर इससे व्याभिचार कभी ना होगा कम
जब तक सर्व शिक्षा में संस्कार ना होगा
उत्कृष्ट चरित्र का यहाँ निर्माण ना होगा
धर्म निभा सकता हैं इसमें महती भूमिका
बस स्त्री को उपभोग वो ना बनने दें यहाँ
जब नारी का बचपन से सभी मान करेंगे
सभी लोग फ़िर कोई ना बुरा काम करेंगे
शिशिर मधुकर
बहुत सुन्दर शिशिर जी
धन्यवाद अभिषेक …………………..
बिलकुल आप सही कहते हैं…..धर्म ….संस्कार सही मायने में कहाँ से आएंगे जब सब दिखावा करेंगे… कन्या पूजन अक्सर सभी करते फिर क्यों मन में संस्कार नहीं आते…..सजा के साथ बच्चों को घर में अपने बेटों को जब तक इज्जत करना नहीं सिखाते तब तक सुधारना बहुत मुश्किल है….और जब तक समाज में बचपन से हम मन में बिठा लें की घर में लड़की पैदा नहीं होगी…भ्रूण हत्या होती रहेगी तब तक उस घर के बेटे इज्जत ख़ाक करेंगे… जब तक हर घर में बेटी के जन्म का स्वागत नहीं होता उसकी हत्या नहीं होती बहुत मुश्किल है मानसिकता को बदलना.. और उसके लिये ऐसी कड़ी सजा होने ज़रूरी है.. डॉक्टर के साथ सब घर के लोग आजीवन कारावास न जाएं तब तक होसला बढ़ता रहेगा…सब चोरी छुपे चलता रहेगा….हर विदयालय….धर्म स्थान पर इस बारे लिखना… परचार करना आवश्यक होना चाहिए और जो पालन न करे उसको कड़ा दंड……
बब्बू जी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार
सत्य कहा आपने शिशिर जी ….सकारात्मक परिणामो के लिये पारिवारिक भूमिका के निर्वाहन पर बल देने का आवश्यक्ता है ।
तारीफ़ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया निवतियां जी …………
नारी का सम्मान अति आवश्यक है ये संस्कार बचपन से ही बच्चों को दिए जाने चाहिए ………………….. बहुत ही बढ़िया मधुकर जी !!
शुक्रिया सर्वजीत …………….
बहुत बढ़िया शिशिर जी…नारी को उसका हक़ तथा उसको सही सम्मान मिलना चाहिए……..
धन्यवाद मनिंदर ……………….
संस्कार तो ठीक है पर धर्म के भरोसे बलात्कार -व्यभिचार खत्म नहीं होगा| धर्म तो स्वयं बलात्कार , धोखे से स्त्री संसर्ग , व्यभिचार से भरा पड़ा है| शिक्षा में संस्कार की बात बहुत अच्छी है, वहां तक ठीक है, पर उसके आगे धर्म को दूर ही रखें तो बेहतर है..
अरुण जी आपका मन्तव्य काफी हद तक उचित है लेकिन चूँकि धर्म अक्सर लोगों के जीवन और चरित्र पर महत्वपूर्ण असर डालता है मैंने इस परिपेक्ष्य में इसके उपयोग की बात कही है. उदाहरणार्थ कन्या को पूजने वालों की आत्मा कभी भी छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार को बढ़ावा नहीं देगी. धार्मिक रूप का गलत इस्तेमाल तो रावण जैसे विद्वान तक ने किया लेकिन उसी धर्म का इस्तेमाल स्वामी विवेकानंद ने चरित्र निर्माण के लिए किया. बुद्ध ने तो उंगलीमाल तक का इसी प्रभाव से ह्रदय परिवर्तन कर दिया.