सोच
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मेरी सोच
बहुत बड़ी है
यह बनी है
अणु समान छोटे छोटे
अनंत बिंदुओं से
मेरी सोच के
हरेक बिंदु में
समा जाता है
अनंत ब्रह्मांड
मेरी सोच के
हरेक बिंदु से
निकल सकता है
अनंत ब्रह्मांड
मेरी सोच के
हर बिंदु में
समाई है सकल सृष्टि
मेरी सोच के
हर बिंदु में
समाया है परमेश्वर
मेरी सोच में
समाया है परमेश्वर
अपनी सृष्टि सहित,
पर मेरी सोच
परमेश्वर से बड़ी नहीं
मेरी सोच
बिंदु भर है परमेश्वर का
आप नास्तिक हैं
और परमेश्वर भी लापता है,
आपकी संपूर्ण सोच में
इसीलिए शायद
आप ठीक ही कहते हैं कि
आपकी सोच के
खुले आसमान में
मेरी सोच
एक पंछी की
उड़ान से अधिक नहीं
मुझे चाहे
बहुत बड़ी लगती हो
पर नि:संदेह
यह बहुत छोटी है
आपकी सोच के सामनेǃ
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—गुमनाम कवि (हिसार)
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कहना क्या चाहते अंत में कि नास्तिक की सोच आपसे बड़ी है?…..अपने नास्तिक शब्द को सिर्फ परमात्मा को ना मानने वालों से जोड़ा….जो एक जनरल सी बात है…पर नास्तिक की सोच में परमात्मा का आस्तित्व है…वो भी परमात्मा को मानता है….हाँ मानने के विधान जब एक दुसरे से अलग हो जाते तो एक वर्ग दुसरे को कोई न कोई नाम रख के संबोधन करता…..ऐसे ही जैसे आजकल secularism and psedu secularism प्रचलित है…..
आपकी समालोचना के लिए हार्दिक आभार संग नमन ǃ निवेदन है कि मैं बहुत अल्पज्ञ हूँ और यह तथ्य मुझे जानने वाले अच्छी तरह जानते भी हैं । प्रस्तुत अकविता में मैं अपने भाव आप तक ठीक तरह संप्रेषित नहीं कर पाया तो निःसंदेह यह मेरी ही कमी है । स्नेहभाव बनाए रखिएगा । सादर,