भोले-वन्दना — सावन मास शिव-शम्भु का मॉस कहा जाता है प्रस्तुत है सावन मास में भोले वन्दना —-
१.
—-लयबद्ध षटपदी अगीत छंद में —-
आदि-शंभु-अपरा संयोग से,
महत्तत्व जब हुआ उपस्थित;
व्यक्त रूप जो उस निसंग का |
लिंग-रूप बन तुम्हीं महेश्वर,
करते मैथुनि-सृष्टि अनूप;
करूँ वन्दना, पुष्पार्पण कर ||
२.
—दोहा छंद में —-
अन्धकार को चीरकर, ज्ञानालोक बहाय |
निर्गुण शिव जब सगुन हों, सो सावन कहलाय |
चित का घडा बनाय के,देंय भक्ति रस डाल |
मन-वृत्ति के छिद्र सौं, जल की धारा ढाल |
काम क्रोध से क्षत नहीं, मन अक्षत कहलाय |
चरणों में शिव शम्भु के निज मन देंय चढ़ाय|
व्यसनों का अर्पण करें, भोले मुक्ति दिलाएं |
भंग धतूरे रूप में शिव पर देंय चढ़ाय |
अंधकार अज्ञान को, मन से देयं भगाय,
महाकाल आराधना, तब सार्थक हो पाय |
अति सुन्दर ………………….
धन्यवाद शिशिर मधुकर जी …
Bahut hi khoobsoorat……..
आभार शर्मा जी …
अत्यंत सुंदर
शिवोमय
तपोमय
उत्कृष्ट
आपको और आपकी रचना को मेरा नमन!
धन्यवाद अरुण कुमार जी