ये मसाले है,मसल के इनको तुम चलो,
ये ज़लज़ले है,जला के इनको तुम चलो।
ये हवा उड़ी है,उड़ाने को तुम्हें,
ये लहर चली है,हिलाने को तुम्हें।
सके ना कोई रोक,ऐसा एक शस्त्र हो,
ना हाथ कोई अस्त्र हो,ना पास कोई वस्त्र हो।
बढ़े चलो बढ़े चलो,मिलेगें तुमको रास्ते,
इसी वक़्त ना सही, मग़र मिलेगें आस्ते।
ये जंगी लोहे है,लोहा लेते तुम चलो,
ये खुरदरे रास्ते है,रास्ता बनाते तुम चलो।
ये दरिया है,दरियादिली दिखाते तुम चलो,
ये ठहराव है,टकराव बनकर तुम चलो।
चले चलो बढ़े चलो,मिलेगें तुमको रास्ते,
इसी वक़्त ना सही, मग़र मिलेगें आस्ते।
___रवि यादव ‘अमेठीया’___
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उम्दा रचना, जोश जगाती कर्म पथ की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करती!
बहुत बहुत धन्यवाद सुरेंद्र नाथ सिंह जी।
खूबसूरत……..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
bahut hi umda rachna…………………….
शुक्रिया मणि साहब।
बहुत सुंदर ……………..
शुक्रिया अभिषेक जी।
बहुत सुंदर ……………..
धन्यवाद विजय जी।
अति सुन्दर …………….!
Thanks a lot sir…
बहुत सुंदर रचना रवि जी ।
धन्यवाद काजल सोनी जी।