जय जय जय हो पत्नी महारानी ,
अपने घर की तुम हो रानी ।
बिन पुछे काम अगर कर कोई ,
तुम बन जाती जगदम्बा काली ।
शेर बन पति जो बाहर घूमे,
हर आकर वो भी चुहा बन जावे ।
झीक झीक करके पति को तुम हो सताती,
बार बार रुठ मायके चली जाती ।
हजार झुठ बोल फिर पति मनाता ,
शाम सबेरे तेरे गुन गाता ।
माता-पिता से फटकार भी खाता ,
जोरु का गुलाम वो कहलाता ।
जिस दिन हाथ मे बेलन आवे ,
उस दिन पति खुब पछतावे ।
मन इच्छा शापिंग तुम हो करती ,
फटा पाकिट तुम फिर पति का सिलती ।
सिंगार तुमको बहोत है भाता ,
ब्यूटी पार्लर तुम से ही चल जाता ।
जिस दिन पति कुछ न बोल जाता,
घर के भूकंप से फिर मोहल्ला हिल जाता ।
जिस घर मे है वास तुम्हारा निराला,
फिर न चल सके कोई गड़बड़ घोटाला ।
जो यह पत्नी चालीसा नित दिन गावे ,
उस घर मे सुख समृद्धि आवे । ।
“प्रेम से बोलीये पत्नी महारानी की जै ”
“काजल सोनी ”
( नोट : कृपया इस रचना को अन्यथा न ले तथा कोई भी गलती के लिए माफ करे )
बहुत खूबसूरत मनोविनोद कराती अच्छी रचना .काजल …………इस परिपेक्ष्य में मेरी रचनाएँ अभिलाषा ( भाग एक ) एव अभिलाषा ( भाग दो ) को नजर करे !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातिया जी उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिए ।
आपकी ये रचना कौन से बेवसाइट पर खुलेगी निवातिया जी मुझे जानकारी नही है कृपया बताये ।
काजल जी मेरी ये रचना इसी साइट पर उपलब्ध है आपसे पहले बब्बू जी पढ़कर अपने विचार भी प्रस्तुत कर दिए है !!
हा हा हा….बैंड बजा दी सबकी….अन्यथा कोई लेगा तो अपने रिस्क पे…आप उसके घर बोल देना…हा हा हा….टाइपिंग मिस्टेक हैं…मैंने नीचे लिखिए देखिये इसको….
जय जय जय हो पत्नी महारानी ,
अपने घर की तुम हो रानी ।
बिन पूछे काम अगर करे कोई ,
तुम बन जाती जगदम्बा काली ।
शेर बन पति जो बाहर घूमे,
घर आकर वो भी चुहा बन जावे ।
झिक झिक करके पति को तुम हो सताती,
बार बार रुठ मायके चली जाती ।
हजार झूठ बोल फिर पति मनाता ,
शाम सबेरे तेरे गुन गाता ।
माता-पिता से फटकार भी खाता ,
जोरु का गुलाम वो कहलाता ।
जिस दिन हाथ मे बेलन आवे ,
उस दिन पति खुब पछतावे ।
मन इच्छा शापिंग तुम हो करती ,
फटा पाकिट तुम फिर पति का सिलती ।
सिंगार तुमको बहोत है भाता ,
ब्यूटी पार्लर तुम से ही चल जाता ।
जिस दिन पति कुछ है बोल जाता,
घर के भूकंप से फिर मोहल्ला हिल जाता ।
जिस घर मे है वास तुम्हारा निराला,
फिर न चल सके कोई गड़बड़ घोटाला ।
जो यह पत्नी चालीसा नित दिन गावे ,
उस घर मे सुख समृद्धि आवे । ।
“प्रेम से बोलीये पत्नी महारानी की जै ”
बहुत बहुत आभार आपका सर्मा जी ।
पुनः टाइपिंग के लिए भी धन्यवाद आपका ।
रचना तक तो ठीक है लेकिन आप अपने जीवन में ऐसा मत कीजियेगा. बहुत खूब….बाकी तो बब्बू जी आपकी मदद कर ही रहे हैं उनकी बातों का अनुसरण करें.
कीजियेगा नही विजय जी ******* हम करते है ।
तभी तो तजुर्बा है कि पतिया घर मे पानी भरते है ।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
एवं बब्बू जी बात मानने मे फायदा ही है अपना ।
अच्छा मनोविनोद काजल जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शिशिर जी ।
bahut badiya kajal ji………………….
मनी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
हकीकत को बयान करते हुए पत्नियों के लिए ज़बरदस्त सुझाव ……………… बहुत ही बढ़िया काजल जी !!
और एक सुझाव आपके लिए भी शीर्षक के साथ अपना नाम लिखें और अज्ञात कवि की जगह भी !!
रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर्वजीत जी ।जी जरुर नाम लिखूंगी ।
सुझाव के लिए पुनः धन्यवाद आपका
क्यों काजल जी, पत्नी जात के पीछे आप खुद हाथ धोकर पढ़ गयी।
मनोविनोद के भाव से उत्तम रचना काजल जी।
अभी इसे मैंने अपनी पत्नी को भेज तो उनका जबाब था की आप इतना बुरा क्यों सोचते है, मै बोला की यह रचना संकलन पर काजल जी से लिया है। उनका जबाब था की मेरी भी तरफ से उनको ढेर सारा प्यार और साधुवाद बोलियेगा।
काजल जी एक अच्छी मनोविनोद पूर्ण रचना मिली पढने को आपके माध्यम से। जहाँ तक मुझे याद है डॉ की दावा से सम्बन्धित भी एक हास्य रचना मै पढ़ा था आपकी, शायद।
बधाई!
सुरेंद्र जी इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका । मैडम जी को भी मेरा नमन और ढेर सारा प्रेम ।
सुरेंद्र जी यह रचना तो बस मनोविनोद के लिए है ।
मै भी किसी की पत्नी हु ।मेरी लव मैरिज है । अपने आप को मै भी बुरा नही कह सकती ।पर कुछ हरकते पत्नी की सचमुच होती है जिदंगी मे ,
जो बहोत मनोविनोद करती है और प्रेम भी देती है ।
मेरी रचना आप सब को पसंद आयी उसके लिए पुनः धन्यवाद आपका ।
एक स्वस्थ हास को उतपन्न करने वाली इस मधुर रचना के लिए आपको ढेरों शुभेक्षा!
इस पत्नी पीड़ित समाज में आपकी यह रचना बड़ी मददगार होगी।
बहुत खूब….
अरुण जी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
पत्नी पीड़ित समाज को एक पत्नी ही उबारती है अरुण जी ।
अति सुंदर रचना काजल जी ।
गुप्ता जी उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आपका ।