अबके बरस बारिश ने बड़ा कमाल कर दिया
सारे शहर की सड़को का बुरा हाल कर दिया
इसमें मगर सरकार और जनता भी क्या करे
किसने कहा बादल से वो एकदम से आ झरे
जब नालियां तालाब हमने कहीँ पे नहीँ छॊडी
बादलों की भी होती हैं फ़िर जिम्मेदारी थोड़ी
नगर पालिका कर्मी भी आखिर तो क्या करे
आपके नालों को खुलवाए या अफसरी करे
पानी का क्या हैं ये साल में एक बार आएगा
नाली नहीँ तो सड़को पर वह बह ही जाएगा
सड़को पे वो बहेगा तो फ़िर नावें भी चलेँगी
नौकायन की खुशियाँ हमें तब घर पे मिलेंगी.
शिशिर मधुकर
bahut badiya kaha aapne shishir ji………………..
Thanks a lot Maninder
नौकायन की खुशिया हमे घर मे मिलेगी *************
क्या बात है ******** खुबसूरत रचना शिशिर जी ।
Thanks. Kajal ji for commenting
बहुत ही बढ़िया ……………………….. बेहतरीन मधुकर जी !!
लाजवाब कटाक्ष…..किसी को नहीं छोड़ा…..यही तो कमाल है…….
So nice of you Sarvjeet for liking
Thank you very much Babbu ji for liking the sarcasm.
बहुत ही बेहतरीन व्यंग्य, आखिर बादलो को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होंगी—— क्या कटाक्ष है सर जी
नमन करता हूँ।
Surendra I appreciate your observation.
व्यंगात्मक रचना…..,यथार्थ का सुन्दर चित्रण !!
Thank you Meena ji for liking the sarcasm
बेहतरीन व्यंग्य……………………….बादलों की रौद्रता को भी तो हम ही जिम्मेदार हैं.
Thanks a lot Vijay
शिशिर साहब आपने व्यंग के माध्यम से सच्चाई को खूबसूरती के साथ पेश किया है l
So nice of you Rajiv ji for commenting.
सरल भाव में गहरा कटाक्ष अति सुन्दर शिशिर जी !
Thank you very much Nivatiya ji
Bahut hi badiya…sir..
Thanks Dr. Swati………..