एक नही सौ-२ है रिस्ते
है रिस्तो की दुनियादारी,
कौन है अपना कौन पराया
जंजीरे लगती है सारी
तोड़के दुनिया के सब बंधन
तुमको अपना मीत लिखा है||
मैने तुम पर गीत लिखा है…
देख कर तुमको सोचा मैने
क्या इतनी मधुर ग़ज़ल होती है?
जैसे तू ज़ुल्फो को समेटे
वैसे क्या रागो को पिरोती है?
खोकर तेरे अल्हड़पन मे
तेरी धड़कन को संगीत लिखा है||
मैने तुम पर गीत लिखा है…
क्या मोल है तेरा ये बतला,
अपना अभिमान भी बेच दिया
पाने की खातिर तुझको,
मैने सम्मान को बेच दिया
सबकुछ खोकर है तुमको पाना
हार को अपनी जीत लिखा है||
मैने तुम पर गीत लिखा है…
Very nice write…………
many-2 thanks Shishir ji…
बहुत खूबसूरत …………….!!
बहुत बहुत आभार निवातियाँ जी ……!!
nice write brother……………
thanks a lot buddy..
very nice…….
thanks a lot Shrija ……
बहुत ही खूबसूरत रचना आपकी ।
बहुत बहुत आभार आपका काजल जी ..
बेहद खूबसूरत…..इसको सोचिये….खो कर तेरे अल्हड़पन में….तेरी धड़कन से संगीत रचा है…….
बब्बू जी बहुत बहुत आभार आपका
shivdutt जी बेहतरीन…………पढ़ते से बहुत ही अच्छे से भाव उत्पन्न हो रहे है।
उम्दा रचना!
shivdutt जी आप मेरी भी रचनाओ पर अपनी प्रतिक्रिया देते तो मुझे कृतज्ञता अनुभव होंती!
सुरेन्द्र नाथ सिंह बहुत बहुत आभार आपका, ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी कि मै आपकी रचनाओ पर प्रतिक्रिया दूं ….
वाहहहह बहुत सुंदर
आभार आपका अभि…….
अति सुंदर…………………
आपका आभार विजय …….