क्या करूँ मैं इस बरसात निंगोड़ी का,
अपनी तो ऐसी बैरन हुई, जी जान से बैर निभावे है !
जब बरसे है झूम झूम, …………..!
तृप्त होता सृष्टि का रोम रोम ….!
एक हम ही दुश्मन इसके…………!
जब पड़े बूँद गात पर, जिया में आग लगावे हैं !
तड़पे है तन बदन ऐसे ….!
बिन पानी मछली जैसे …!
सारे जग से प्रीत करे, कम्बखत हमसे अच्छा बैर निभावें है !!
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डी. के. निवातियाँ ____!!!
बरसात में भी जी जलता है. बहुत खूब…..मन की वेदना का समाधान बारिश की बूंदों के पास भी नहीं है….अति सुंदर……………….
नजर इनायत का बहुत बहुत धन्यवाद विजय ……..!!
Beautiful……………..
Thanks shishir ji
behad khubsurat rachna………………………
बहुत बहुत धन्यवाद मनी…!!
निवातिया जी बेहतरीन रचना ************
बहुत बहुत धन्यवाद काजल …!!
वाह…..कमाल कर दी चाहत की….उलाहने की….अदा की…तड़पन की….मन झूम उठा…..बेहतरीन……?
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद बब्बू जी !
बरसात अगर दिल में आग लगाती है और तन बदन तड़पाती है तो समझ लीजिये हज़ूर प्यार का बुखार चढ़ा है जिसका इलाज तो महबूब से मिलने पर ही होगा बरसात को क्यूँ कोस रहे हैं ………………….हा हा हा …………………. लाजवाब निवतियां जी !!
सत्य कहते है आप …..आखिर मुहब्बत के विशेषज्ञ जो ठहरे………..हाहाहाहा……..बहुत बहुत धन्यवाद सर्वजीत जी !
बरसात में अगर दिल में आग लगे तो उसे बुझाने के लिए अपने प्यार का साथ चाहता है न की बरसात। भले धरती संतृप्त हो जाये पर दिल कहा होता है। उम्दा रचना कोमल और वियोग सृंगार के पुट के साथ
निवातियाँ सर 29 जुलाई को वर्षा ऋतु शीर्षक से एक श्रृंगार रस की कविता पोस्ट की है मैंने। आप उस रचना पर अपना आशीर्वाद देते तो मुझे अति प्रशन्नता होती।
रचना के मूल को नजर कर विस्तृत रूप में भाव प्रस्तुत करने का धन्यवाद सुरेंद्र …….अवश्य आप लोगो की प्रत्येक रचना पढ़ने की कोशिश करता हूँ !!
अत्यन्त सुन्दर रचना……., बहुत हीखूबसूरत…….!!
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी !
आपने दिल को जीत लिया मनमयूर झूम उठा
दिल को छूने वाली प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद डॉ सिंह !!