मैंने जिंदगी को रेलगाड़ी की तरह जाना।
जिसका प्रारम्भ जन्म और मृत्यु गंतव्य है।
मेरी इस यात्रा का मैं सारथी हूं।
कई लोग आये और गये।
कोई तत्काल ही चढ़ गया तो कोई बिना कुछ कहे उतर गया।
किसी की सीट आरक्षित तो कोई बिना टिकट सफर कर गया।
कभी मैं देर करता तो कभी उसे देर हो जाती।
इस प्रकार मुझसे वो और मैं उससे छूट गया।
शीतलेश थुल !!
बेहतरीन, जीवन फलसफा को लिखा है थुल जी……
उम्दा!
बहुत बहुत धन्यवाद सिंह साहब।
bahut hi khubsoorat rachna………………………
बहुत बहुत धन्यवाद मणि जी।
बहुत सुंदर………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद विजय कुमार सिंह साहब।
Nice thoughts Sheetalesh.
Heartily Thank you “Shishir Sir”
वाह क्या बात…..ज़िन्दगी का सफर है ही ऐसा….बेहद खूबसूरत…उम्दा…..
बहुत बहुत धन्यवाद !!!!!
बेहतरीन अल्फाज ………….अति सुन्दर !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।