एक मुद्दत पहले गीली माटी में
घुटनों के बल बैठ कर
टूटी सीपियों और शंखों के बीच
अपनी तर्जनी के पोर से
मैनें तुम्हारा नाम लिखा था ।
यकबयक मन में एक दिन
अपनी नादानी देखने की
हसरत सी जागी तो पाया
भूरी सूखी सैकत के बीच
ईंट-पत्थरों का जंगल खड़ा था
और जहाँ बैठ कर कभी
मैने तुम्हारा नाम लिखा था
मनमोहक सा बोन्साई का एक पेड़ खड़ा था ।।
“मीना भारद्वाज”
बहुत ही सुंदर……………..बोन्साई का एक पेड़ खड़ा था.
धन्यवाद विजय जी !
मीना जी बहुत ही बेहतरीन……….जीवन यूँही हर क्षण बदलता रहता है।
हार्दिक धन्यवाद सुरेन्द्र जी !
अति सुन्दर जी ;;;
शुक्रिया अभिषेक जी !
प्रेम कभी मरता नहीं. अपने निशां छोड़ जाता है. शानदार रचना मीना जी
हौसला अफजा़ई के लिए शुक्रिया शिशिर जी !
वाह….आपकी हर रचना एक नया फलसफा समझा जाती….बेहतरीन….प्यार न हो तो “पेड़” रुपी सृष्टि नहीं होती…..
रचना सराहना के लिए तहेदिल से शुक्रिया शर्मा जी.
खूबसूरत सोच के साथ एक बहुत ही खूबसूरत रचना मीना जी l
हार्दिक आभार राजीव जी !
अमर प्रेम की ………नायाब मिसाल …………….जज्बातो को शब्दो में पिरोने का अनूठा अंदाज …बहुत बेहतरीन !!
रचना सराहना और हौसला अफजा़ई के लिए हार्दिक आभार निवातियाँ जी !!
bahut hi shandar andaz mein apki rachna………………………
Thank you very much Mani ji.
मीना जी बहुत बढ़िया ।
धन्यवाद काजल जी !!