सभी सुधी जन अग्रज मित्रों पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सोनभद्र भदोही वाराणसी और गोरखपुर के जिलों में सावन के महीने में एक अमर लोक गीत कजरी गाई जाती है। अलग अलग जिलों की कजरी का रूप भी अलग अलग होता है। सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिर्जापुरी कजरी को मिली है। समय के साथ इन लोक गीतों का बिलोपन हो रहा है।
इसी मिर्जापुरी कजरी को समर्पित एक वियोग श्रृंगार की गीत(कजरी) लिक्ख रहा हूँ। इसके शब्द भोजपुरी के नजदीक होते है!
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बीतल जाला देखा सावनी बहार पिया
आजा अबकी बार पिया ना!
बहे लागल पुरबी बयार! लागे जिया न हमार!!
लागे जिया न हमार ……….
लागे जिया न हमार ……….!!
झर झर बहे लागल असुवन का धार पिया
आजा अबकी बार पिया ना!!
पपीहा जियरा जलावे! ननदी हमके चिढावे!!
ननदी हमके चिढावे …………
ननदी हमके चिढावे …………!!
डाले झुला उ अमवा के डार पिया
आजा अबकी बार पिया ना!!
तू गइला कउने देस! देला एको ना सन्देश!!
देला एको ना सन्देश ………..
देला एको ना सन्देश ………..!!
सवत बनी गइल नौकरी तोहार पिया
आजा अबकी बार पिया ना!!
छोड़ दा दुसरे का गुलामी! मिलके करीं जा किसानी
मिलके करीं जा किसानी……….
मिलके करीं जा किसानी ………!!
भरल रही सुख से घर संसार पिया
आजा अबकी बार पिया ना!!
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
वाह……कमाल ही कर दिया हुजूर……डांस करने का मन होने लग गया……..तेरी दो टकिया दी नोकरी मेरा लाखों का सावन जाये रे……?
बब्बू जी आपकी अमृत कलश से भरी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत बड़ा उपहार होता है!
धन्यवाद आपका!
चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये सावन जो अगन लगाए उसे कौन बुझाये …………………. ज़बरदस्त सुरेन्द्र जी !!
सर्वजीत सिंह जी, यह लोक गीत कजरी है। मुझे नहीं मालूम की लब्ज समझ में आये की नहीं पर हाँ प्रतिक्रिया से लगता है की मै अपने बात कहने में कुछ सफल हुवा।
सुरेन्द्र जी पूरा गीत समझ आ रहा है, जो पति की जुदाई में पत्नी उसे याद कर कर के रो रो के उसे बुला रही है कि उसका दिल नहीं लग रहा, कह रही है कि दूसरों की गुलामी छोड़ के आ जा यहीं मिल के खेती करेंगे और घर संसार सुख से भर जाएगा …………… बहुत ही बढ़िया !!
धन्यवाद सर्वजीत जी। मै चुकि भोजपुरी में लिखा हूँ इसलिए डर रहा था। आपने तो पूरा अर्थ ही लिख दल। महती धन्यवाद सिंह जी। कोटि कोटि आभार संग नमन!
अति सुन्दर मनभावन लोकगीत सुरेन्द ….. आज के वयस्त व एकांकी जीवन के कारण लोकगीतो का चलन लुप्त प्राय हो गयै है……उन्हे जीवंता प्रदाव करने की आवष्यकता हे चाहे वो किसी भी क्षेत्रीय भाषा से हो ।
सच कहते है निवातियाँ जी
आपके स्नेह भरे प्रतिक्तिया के किये आभार निवातियाँ जी!
सुरेंद्र कमाल कर देली. आनंद आ गइल.
धन्यवाद! और कोटि कोटि आभार मधुकर ज
जबरदस्त प्रस्तुति अनोखा लोक संगीत
डॉ सिंह जी को कोटि कोटि नमन!
धन्यवाद!
बहुत ही बढ़िया सुरेंद्र जी………….आपके लेखन में बहुत दम है…………ऐसे ही लिखते रहे |
धन्यवाद मनी जी………..अभिनन्दन आपका!
सुरेंद्र जी ये क्या आपने तो कमाल कर दिया ।
बहुत ही लाजबाब ********************।
काजल जी आपकी उत्साह बढाती प्रतिवचन के लिए धन्यवाद!
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, ख़त्म होते गीतों को संजो रहे हैं. बधाई……………..
विजय जी अतिशय धन्यवाद! आपका प्यार यूँही बना रहे!
बेहद सुन्दर लोकगीत.आरम्भ का परिचय गीत की सुन्दरता और भी बढ़ा रहा है ।
धन्यवाद मीना जी, आपको अच्छा लगा, तो मेरा प्रयास सार्थक रहा!
सुरेंद्र जी आप मैथ के प्रोफेशर है किन्तु मै तो कहूंगा आप मैथ के साथ-साथ हिंदी के भी ज्ञाता है जो हमें अच्छी और सच्ची सोच के रचना के माध्यम से पेश करते है l कोई शक नहीं लाजवाब …
मित्र राजीव जी आपके असीम प्यार से अभिभूत हूँ मै!
आपके प्यार से भरे इस प्रतिक्रिया के लिए कोटि कोटि आभार!
क्या कहने !!
वाह !!
शानदार !!
आनंद सागर जी धन्यवाद!