देख दूर से बारिश की बूंदे. सोचा,
जवानी के सावन का अहसास लिख दू,
पर सोच जिया नहीं जिस पल को,
उसे लफ़्ज़ों में पिरो कैसे लिख दू ?
चल दिया भीगने के लिए, खोये,
बचपन को जिन्दा कर लिख दू,
भीग मुद्दतो बाद, सावन पर,
बहकती, मुस्कुराती गजल लिख दू,
रखे कदम घर से बहार, मिला,
कड़वा अनुभव सोचा लिख दू,
मुह पर पड़ती बूंदो में, जहरीला सा,
गैसों का स्वाद सकूँ देता लिख दू,
लगभग सड़के सुनसान, भीगने के,
डर से घरो में बैठे लोग लिख दू,
जमा हुआ पानी हर तरफ, डेंगू,
मलेरिया होने का खतरा लिख दू,
मिले कुछ लोग भीगते मजबूरी में,
उनके माथे की शिकन लिख दू,
फसी मिली कुछ गाड़िया पानी में,
मजबूर हो धक्का लगाना लिख दू,
पड़ गयी बारिश हद से ज्यादा,
बर्बाद फसल देखता किसान लिख दू,
ललचायी नज़रो से देखना भीगते,
किसी बाला का बदन लिख दू,
कोई झूला डाल झूले, राह देखती,
पेड़ की शाखाओ का इंतज़ार लिख दू,
महकती ख़ुशबो पुड़ो और खीर की,
गुजरे ज़माने की बात लिख दू,
डूबे अंधविश्वाशो में लोगो को,
पानी में टोटका करते लिख दू,
बदला जर्रे-जर्रे का मिजाज,
ऐ “मनी” चल बदला सावन लिख दू,
सुन्दर अंदाज़ …………..
तहे दिल आभार शिशिर जी आपका इस उत्साहवर्धन के लिए
लाजवाब……..हर पहलु को लिख डाला मनी जी…..?
बहुत बहुत आभार आपका इस सराहना के लिए |
बदलते वक़्त के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है यहां तक कि सावन भी ………………….. बहुत ही बढ़िया मनी !!
आपके इस उत्साहवर्धन के लिए सर्वजीत जी आपका तहे दिल आभार |
बहुत कुछ लिख डाला वो भी तर्कसंगत…… ।।
तहे दिल धन्यवाद निवातियाँ जी आपका इस सराहना के लिए |
बेशक लिखते रहिये……………आप बहुत कुछ लिखते हैं…………बहुत विषय को छूटे हैं………..इसलिए आपकी बाइक को चलते ही रहना चाहिए. बहुत खूब.
ji vijay ji jarror…………………tahe dil dhanywad apka
बहुत उम्दा मनी जी
thank you abhishek ji……
यथार्थ चिन्तन…..,सुन्दर रचना…..,
thank you meena ji……
बहुत खूब मनी जी
thank you rajeev ji…..