आओ सुनाऊँ तुम्हे एक कहानी,
झूठी नहीं है ये सच्ची कहानी,
एक लड़की थी सीधी और भोली भाली,
अव्वल थी सबमें और प्रखर बुद्धि वाली,
प्यार के सपने सजोए,ससुराल को चली वो,
सोचा था उसने,बनेगी अपने पिया की वो रानी,
अगले ही पल सपने सारे टूटे,
जब सास की नजरों में वो बनी नौकरानी,
सास ने अपना आदेश सुनाया,
इस घर में रहना है, तो काम सारे करने पड़ेंगे,
अच्छा न होगा,गर मेरी इच्छा के विपरीत तूने माँ बनने की ठानी,
पर होनी को कुछ और मंजूर था,
उसके गर्भ में आया नन्हा अंश था,
सोचा था उसने सब खुश हो जाएंगे,
बच्चे की किलकारी से सुख के दिन आएंगे,
पति के चेहरे पर खुशियां थी बहुत,
पर माँ के आगे वो विवश था बहुत,
सास के गुस्से का ठिकाना न रहा,
मेरी इच्छा के विपरीत तू गर्भवती है हुई,
अब तो तुझे सब भुगतना पड़ेगा,
खर्चा बढेगा,इसलिए काम भी तुझको ज्यादा करना पड़ेगा,
बहु विवश थी,चुपचाप सहती गयी,
दो वक्त की रोटी के लिए आंसुओं के घूँट पीती रही,
कुछ माह बाद उसने प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया,
पर उसके सब्र का बाँध तब टूट सा गया,
जब उसकी बेटी को भी मरने के लिए छोड़ दिया था गया,
पति पत्नी ने अंततः घर छोड़ने का फैसला किया,
अपनी बिटिया को लेके दूसरे शहर वो गए,
कठिनाइयों का तो जैसे अंबार था,
पर उस लड़की को भगवन पर था अटूट विश्वास बड़ा,
ईश्वर की कृपा से पति ने अच्छी नौकरी पाई,
दुःख के दिन बहुरे, सुख की शुभ घड़ी थी आई,
लड़की को अपने सब्र का फल था मिला,
बेटी के साथ प्यारा सा बेटा भी मिला,
सुख से फिर वो चारों रहने लगे,
ईश्वर को कोटि कोटि धन्यवाद देने लगे,
By:Dr Swati Gupta
सुन्दर भावयुक्त रचना डॉ. स्वाति
Thanks a lot Shishir ji
sunder rachna…..dar ke aage jeet hai….
Thanks in tons..maniji
बिल्कुल सच, हम ऐसे कई घटनाओं से वाकिफ हैं।।
दिल की बात सामनें लाने के लिए कोटिशः धन्यवाद।।
Thanks a lot ved prakash ji…
वाह क्या बात है….बहुत मार्मिक….अक्सर होता है ऐसे…. आपका साथ आपके पति देव जी ने भी दिया….दोनों को बधाई……
आपका बहुत आभार बब्बू जी।
स्वाति जी, एक असहाय औरत की दास्ताँ लिख दी आपने। सच में आज औरत ही औरत की सबसे बड़ी रुकावट समझ में आती है। मार्मिक रचना!
चुकी आपकी खुद की कथा है, इसलिए मुझे आपसे सहानुभूति भी हो गयी है। इश्वर आपको जहाँ की खुशियाँ दे। कभी हमे भी बुलाये आप या हमारे गरीबखाने मेहमान नवाजी का मौका दें!
आपने सही कहा सुरेंद्र जी। एक औरत ही औरत की पीड़ा का कारण बनती है।
आपका धन्यवाद सर।
जरूर सर।……??
बहु को बहु समझा जाता है बेटी नहीं अगर बहु को बेटी समझा जाये तो किसी भी बेटी को सुसराल में जा कर दुःख नहीं भोगना पडेगा ………………………….. बहुत ही बढ़िया स्वाति जी !!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद…. सर्वजीतजी।।
बहुत मार्मिक रचना है स्वाति आपकी ….जहँ तक मै समझ पा रहा हूँ वास्तविकता इससे कई ज्यादा वेदना पूर्ण रही होगी …..नमन आपकी सत्यनिष्ठा धैर्य और विश्वाश को…जिसके सुखद परिणाम का अहसास अब करती होगी ।
आपका बहुत धन्यवाद…सर।।
कुछ बातें ऐसी होती हैं जो शव्दों में बयां नहीं की जा सकती केवल उसकी पीड़ा दिल में कसक बनकर चुभती रहती है।
लेकिन भगवान पर विश्वास उस पीड़ा को सहने की और दुःख से बाहर निकलने की शक्ति देता है।
सुस्वागतम……………..नारी की पीड़ा का खूबसूरत वर्णन……………….पीड़ा भी नारी के ही द्वारा…….मार्मिक……
आपका धन्यवाद सर…आजकल ज्यादातर औरतें औरतों के द्वारा
दी हुई पीड़ा की शिकार हैं।
लाजवाब बधाई…………
आपका बहुत आभार अभिषेक जी।
सच्चाई को पेश करती एक बहुत मार्मिक रचना लबहुत ही खूबसूरती के दिल के बयां को दर्शाती है रचना स्वाति जी l
आपका धन्यवाद राजीव जी।