हवाओं में आज एक हलचल है
जाने क्यों पत्तों में सरसराहट है
ये मौसम नहीँ अजीब आहट है
बात कुछ नहीँ लेकिन चाहत है;
फुटपाथ पर सोया मैं उठा नहीँ
रौंदा जिस्म जिसने दिखा नहीँ
जंगल मेरा घर था सड़क नहीँ
इन्सान ही था मैं जानवर नहीँ;
भावों को अपने बदल न पाया
खामोशी संग मेरा लहू बहाया
इंसानियत के तो दुश्मन सभी
तू मुझसे भी इश्क न कर पाया;
दर्द तो ज्ञानी भी न समझ पाये
लाचार भी हमको कह ना पाये
खुदकुशी में पहचान हुई वीरानी
ख़त्म करो अब न्याय की कहानी॥
……. कमल जोशी…….
very nice………
Dhanyavaad Abhishek Ji
बेहतरीन……………………जो दर्द आपने बयां किया है वही दर्द हम सबके सीने में भी है की आम आदमी के लिए न्याय नहीं है.
जोशी जी, क्या कहा जाये। आपका दर्द हम सबका दर्द है।
पर कभी कभी दर्द की दवा नहीं दिखती।
बेहतरीन भाव लिए आपने लिखा है!
अति सुन्दर कमल …………!!
कमल जी बहुत सुन्दर *************
बहुत खूबसूरत….आप एक भाव के बाद थोडा गैप डालते और अच्छा होता…