हम आज तक खामोश हैं और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों में हक़ बस मेरा नजर आता है
देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है
क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है
इस कदर अनजान हैं हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है
ये दीवानगी अपनी नहीं तो और फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे चेहरा नजर आता है
देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए
मदन मोहन सक्सेना
बेहतरीन रचना मैदान जी. आनंद आ गया पढ़ कर
bahut badiya sir…………
लाजवाब…….क्या बात है…….
बढ़िया सर जी…….!
अति सुन्दर……………………….!!
soo nice madan ji……
बहुत लाजवाब काबिले तारीफ़
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन
https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena
मदन मोहन सक्सेना
बहुत खूब मदन मोहन सक्सेना साहब।
दिल को छु गयी