नजर से बात करता हूँ,
नजारा बोल उठता है।
जमाने से बगावत मे,
किनारा बोल उठता है।।
अभी इस दौर में सबूतों पे,
चलने की आदत मत डालो।
पुराना राज भी अक्सर
चिट्ठी खोल उठता है।।
खुशी नोंटों से ना होती थीं,
बचपन मे हमें हरदम।
खनक सिक्कों की भी सुनकर,
बचकाना बोल उठता है।।
ऋषभ पाण्डेय राज
बहुत खूबसुरत ऋषभ ……सुझाव स्वरूप एक परिवर्तन प्रस्तुत करता हूँ तर्कसंगत लगे तो विचार करना ,
“पुराना राज भी अक्सर
चिट्ठी खोल उठता है।।”
के स्थान पर
“पुराना खत भी अक्सर
कई राज खोल उठता है।।”
अधिक उपयुक्त होग ।
बिल्कुल। सर आप का सुझाव बेहतर है मै पूर्ण कोशिश करूगा आपके सुझाव को प्रयोग मे लाने के लिए।
अच्छी भाव के साथ आपने लिखा है। बस शब्दों का यथा स्थान उपयोग पर धयन देंगे तो चार चाँद लग जायेगा रचना में!
जी आभार…. पूरी कोशीश करुंगा।