वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो,
जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?
न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,
शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!
जला प्रेम का दीप देखो दिलों में,
दिखेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।
जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो,
सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।
रचना-रामबली गुप्ता
शिल्प- सात यगण और अंत में एक गुरु
(लघु गुरु गुरु)×७+गुरु=१२२×७+२
अति सुन्दर…….,
अतिशय आभार आदरेया मीना जी
बेहतरीन गुप्ता जी
सादर आभार आद० अभिषेक जी
बहुत सुन्दर गुप्ता जी..
धन्यवाद सोनित भाई जी
यथार्थ से परिचय कराती खूबसूरत रचना !!
प्रतिक्रिया द्वारा रचना का मान बढ़ाने के लिए हृदयतल से आभार आद० निवातियाँ जी
आप की रचनाएँ एकेडमिक स्तर की रचनाएँ हैं. आप अगर शिक्षा क्षेत्र से जुड़े होंगे तो अच्छी बात होगी. बेहतरीन………………..
धन्यवाद आद० विजय कुमार सिंह जी
सुन्दर रचना पर निष्ठां भरी होना चाहिए ना कि भरा
आद० शिशिर जी, अव्वल तो रचना पर प्रतिक्रिया एवं सुझाव हेतु हृदयतल से धन्यवाद स्वीकार करें। “भरा” के स्थान पर “भरी” होने के संदर्भ में आपकी शंका निर्मूल नही है। चूंकि “निष्ठा” स्त्रीलिंग है अतः एक पाठकीय दृष्टिकोण से “भरा” के स्थान पर “भरी” होना समीचीन प्रतीत होता है और ऐसा भी नही है कि इस बाबत मैंने पूर्व में विचार नही किया। किन्तु क्षमा चाहूँगा आप कविता में मेरे भावों तक न पहुँच सके। ” जहां नेह-निष्काम-निष्ठा भरा हो” में “नेह-निष्काम-निष्ठा” सामासिक पद है अतः आप इसे इस प्रकार लें तो सम्भवतः स्थिति स्पष्ट हो सके- ‘जहां निष्ठा से भरा हुआ निष्काम नेह हो’ या ‘जहां निष्ठा भरा निष्काम नेह हो’।
एक सच्चे एवं साहित्य के प्रति समर्पित रचनाकर्मी को कटु से कटु आलोचनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए। सुधीजनों के यथोचित सुझावों से रचना को और भी निखरने का अवसर प्राप्त होता है साथ सीखने को मिलता है सो अलग। आज आपकी संशोधनात्मक प्रतिक्रिया से मन को प्रसन्नता हुई। भविष्य में भी आपसे रचनाओं पर सुझावों की हार्दिक अपेक्षा है। इसके लिए आपका सदा आभारी रहूंगा। पुनश्च आभार। सादर
आपेक्षा*** पढ़ा जाय
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ. जब मैंने रचना को दोबारा पढ़ा तो मुझे भरा का प्रयोग ही सही लगा. लेकिन मैंने वास्तव में व्याकरण के अनुसार सुझाव नहीं दिया था क्योंकि इस तरह की विशेषज्ञता मेरे पास नहीं है. आपके सुझावानुसार मैंने अपनी रचना के शिल्प में भी परिवर्तन किया है कृपया उस पर भी अपनी प्रतिक्रया अवश्य दे. मुझे अपनी रचनाओं पर आपकी आलोचनाओं का हमेशा इंतज़ार रहेगा.
आद० शिशिर जी, इस साइट पर नया होने के कारण मैं सभी लिंकों को ठीक प्रकार समझ नही पा रहा। आपकी रचना का शीर्षक क्या है? वैसे मेरा वाट्सएप नम्बर ७३७९६६१८२७ है। आद० शिशिर जी यदि हम अपनी नव-रचित हर रचना को आपसी विमर्श द्वारा परिष्कृत कर पटल पर रखें तो कैसा हो?
वाह क्या बात है…..बहुत खूबसूरत….और विचारों का आदान प्रदान भी…..मुझ जैसे को जिसे बिल्कुल ज्ञान नहीं बहुत कुछ सीखने को मिल रहा…..?
हार्दिक आभार आद० सी० एम० शर्मा जी। वास्तव में मेरा मानना है कि रचनाओं पर व्यापक चर्चा होनी ही चाहिए तथा आवश्यकतानुसार रचनाओं में उचित संशोधन भी किये जाने चाहिएं। पारस्परिक चर्चा से न केवल जानकारी में वृद्धि होगी अपितु रचनाओं में परिष्करण के साथ-साथ रचनाकर्म में भी निखार आएगा।
रामबली जी अत्यंत उत्तम रचना! बधाई आपको
आपकी मात्रात्मक आधार पर लिखी रचना और भी मन को भा रही है!
beautiful