कही मिलता बाज़ार में,
तो खरीद लेते हम भी पल दो पल के लिये !
ईमान धर्म सब कुछ बिकता है,
एक कमबख्त सुकून नहीं मिलता किसी दूकान पर !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
कही मिलता बाज़ार में,
तो खरीद लेते हम भी पल दो पल के लिये !
ईमान धर्म सब कुछ बिकता है,
एक कमबख्त सुकून नहीं मिलता किसी दूकान पर !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
बहुत खूब निवतियां जी ,सुकून मिलता नहीं बाज़ारों में , मिलता है वह. मन के ही गलियारों में
आपकी शानदार प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार किरण जी…अन्य रचनाओ पर भी आपकी नजर अपेक्षित है !
वाह…..100% सत्य….सुकून यूं मिलता होता तो कोई भी अमीर जो हर किसी वस्तु खरीदने का दम भरता दुखी ना होता…….बेहद खूबसूरत …..?
सत्य कहा आपने बब्बू जी…..अमूल्य प्रतिकिया के लिए ढेरो धन्यवाद आपका !!
सच लिखते है निवातियाँ जी, मार्केट में भले पैसे से सब कुछ खरीदी जाये पर सुकून के लिए ऐसा कुछ नहीं दीखता।
बेहद उम्दा रचना!
आपके अनमोल वचनों का तहदिल से स्वागत सुरेंद्र ……………!!
१००% सत्य बस सकूँ ही नहीं मिलता……………….बहुत बढ़िया निवातियाँ
बहुत बहुत धन्यवाद मनी…………….!!
बहुत ही खूबसूरत………..आज तो सुकून की ही सबसे ज्यादा जरुरत है.
अनेको अनेको धन्यवाद विजय आपका !!
अति उत्तम ……………
शुक्रिया ……………शिशिर जी !!
वाह क्या बात है निवातियाॅ जी, सुकून की तलाश में तो राजा भी भिक्षुक बन गए ……………………लाजवाब !!
आपके यथार्थता को दर्शाते खूबसूरत वक्तव्य का ह्रदय से आभार सर्वजीत जी !!