मुस्लमानो पर ये बुरा इल्ज़ाम रह गया ।
मुस्लमान इसी लिए बदनाम रह गया ।
परहेजगार नमाज़ी अब न रहे मस्ज़िदों मे,
दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया ।
खून किसी का भी गिरे नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर ।
बच्चे सरहद पार के सही किसी की छाती का सुकून है आखिर ।
ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे।
मासूमों के क़ब्र पर चढ़कर,कौन सी जन्नत जाओगे ।
ये हरगिज़ हरगिज़ ज़िहाद नहीं है।.
दहशत किसी मज़हब का पैगाम नहीं है।
ये कैसी इबादत ऐ कैसा जुनुन,
हमें पक्का यकीन है ये कतई इस्लाम नहीं है।. ।
खामोशी कायर बनादेंगी जागो मुस्लमानो ।.
फिरकापरस्ती छोडकर होश मे आवो मुस्लमानो ।. जाहीलो के कब्जे से आझाद करो इस्लाम को । इस्लामने दिया है और देता रहेगा मोहब्बत का पैगाम सारी दुनिया को ।.
(आशफाक खोपेकर)
धर्म और जेहाद के नाम पर आतंक का खेल खेलने वाले मौकापरस्तों को आइना दिखती खूबसूरत रचना ………आपकी सर्जनशीलता को नमन !!
dil ko chu lene wali rachna apki……………….
बेहतरीन……………….आपके उम्दा प्रयास के लिए आपको नमन.
हर किसी को जो धर्म के नाम पे कायर कृत्य करते हैं…एक आईना दिखाती रचना है….बहुत लाजवाब……….
बहुत उम्दा रचना. वास्तव में इस्लाम को जाहिलों के चंगुल से निकालने की आवश्यकता है .
परहेजगार नमाज़ी अब न रहे मस्ज़िदों मे,
दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया ।
आपकी यह पंक्ति बहुत कुछ कह जाती है। एकदम सत्य लिखा है आपने अपनी कलम से!