आज भी याद आ जाते है वो दिन l
जब फिल्म आती थी सिर्फ एक दिनll
रविवार को रहता था उसका इंतजार l
खाना बनाकर,रहते थे देखने को तैयारll
आज भी याद आ जाते है वो दिन l
अपनों की चिट्ठी आती जिस दिनll
चिट्ठी में लिखे शब्द याद आते है l
कुशलता भगवान से नेक चाहते है ll
आज भी याद आ जाते है वो दिन l
कागज़ की कश्ती बनाते जिस दिन ll
अपनी कश्ती को पानी में बहाते थे l
कोई भी जीते,सब खुश हो जाते थे ll
आज भी याद आ जाते है वो दिन l
लुका-छुपी खेलते मिलकर जिस दिनll
दूसरे के छिपने पर, ढूढ़ने लग जाते थेl
मिलने पर धप्पा बोल, खुश हो जाते थे ll
अब ……………………….
दोस्तों की दोस्ती, शब्दों में सिमट गयी l
रिश्तों की मिठास इंटरनेट पे अटक गयी ll
यादे आती है पर नहीं आते अब वो दिन l
ना जाने कहाँ गए, वो प्यार भरे दिन ..ll
ना जाने कहाँ गए, वो प्यार भरे दिन …
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बहुत ही सुंदर…………..लेकिन हमारे बच्चों को याद आएंगे वो दिन की कभी मोबाइल पर खेलते थे पोकेमान और लग गया था कई जगह ban .
धन्यवाद विजय जी
अच्छा प्रयास है
Thanks Ram Bali ji
अति उत्तम राजीव जी
Thanks Abihishek ji
बहुत खूबसूरत राजीव …………..!!
कविता को सराहने के लिए धन्यवाद निवितिया जी l
समय के साथ परिवर्तन अनिवार्य है….हाँ यादें हमेशा मीठी होती हैं…दर्द भरी भी….बहुत खूबसूरत भाव आपके…संजो रखिये इनको सदा के लिए…..
धन्यवाद बब्बू जी l
old days beautifully described………
शिशिर साहब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद l
समय. के साथ वातावरण बदलता रहता है .जो कल था वह आज नहीं और जो आज है वह कल. नहीं. होगा सारे बच्चे पोकेमोन के पीछे भाग रहे है . एक नया शोशा छेड़ा हुआ है aapne अच्छा चित्रण किया है
पुराने दिनों की यादें हमेशां रह रह के याद आती हैं …………………………….. बहुत खूब राजीव जी !!
रामबली जी जीवन चक्र यूँही चलता रहता है। यहाँ रह कति है सिर्फ खट्टी मिठ्ठी यादें।
निसंदेह सभी को उनका बचपन प्यारा होता है!
गुजरा जमाना यादों का एक पिटारा होता है।
होती है उसमे अपनों की खुशबूँ, बड़ो का प्यार
कही दोस्तों से जिरह कही इश्क का इजहार!
मुझे भी कब गवारा था की बड़ा बन जाऊ
छोड़ बचपन के यारो को कागज में खो जाऊ
कमबख्त जिन्दगी का यह फलसफा मुझे कहा ले जायेगा
इन्सान तनहा है और तन्हा ही रह जायेगा
रामबली जी आपकी रचना पढकर तत्काल में जो मेरे मन से उद्दगार निकले उसे मैंने लिख दिया।
आपको नमन!
राजीव जी मेरी भूल को कृपया माफ़ करे और हो सके तो उपर के प्रतिक्रिया को हटा दें। मै भूलवश हर जगह आपके नाम के बजाय किसी और कवि मित्र का नाम लिख दिया।
मेरी और कोई मंशा न थी।
आपको राजीव जी दिल से नमन और आंतरिक शुभेक्षा!
सुरेंद्र जी अपने ऐसा कुछ नहीं कहा की जो में बुरा मानू l मैंने आपकी भावना की हमेशा कद्र की है और करता रहूँगा l सुरेंद्र जी सबने पुरानी बातो के बारे मे कहा किन्तु यहाँ मेरा मकसद केवल पुरानी यादो को याद करना नहीं था मेरा मकसद तो केवल अंतिम के पहरे पर था जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया l समय बदलता है अच्छा है लेकिन समय के साथ लोगो का आपस में प्यार, सहयोग भी कम हो जाये ये अच्छी बात नहीं इसी को मैंने अपनी कविता में कहना चाहता था किन्तु पोकेमॉन के खेल से इस कविता की तुलना करना बेमानी सा लगा l